आज पाश्चात्य संस्कृति सभी के दिलों पर राज कर रही है और भारत में तो पूरी तरह से समाती जा रही है। बच्चों को इससे कैसे दूर रखें? और घर में यह संस्कृति ना आए इसके लिए हम क्या उपाय करें? हम कैसे एक सदगृहस्थी बना सकें?
पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से अगर आप किसी को बचाना चाहते हैं तो उसका सीधा और सरल उपाय है कि लोगों के हृदय में सांस्कृतिक निष्ठा को जगायें! उनके दिल-दिमाग में यह बात अच्छे तरीके से स्थापित करने का प्रयास करें कि मूलतः हमारी संस्कृति है क्या? पश्चिम की चमक जीवन की वास्तविक चमक नहीं है। उन्हें ये समझाना चाहिए कि पश्चिम की लाली और पूरब की रोशनी में बहुत अन्तर है। पूरब की रोशनी सुबह की होती है जो सबको जगाती है, स्फूर्ति दिलाती है और पश्चिम की रोशनी शाम को होती है जो अंधेरा लाती है, सब को सुलाती है।
उन्हें यह समझाना चाहिए कि पश्चिम की जो भी चमक अभी दिख रही है वह अस्थाई है वो हमारे जीवन को थोड़ी सुविधा भले दे दे पर सुख नहीं दे सकती। अंतत: उसका परिणाम भयानक होगा और जब लोगों के मन में यह बात अच्छे तरीके से स्थापित हो जाती है, तो फिर वो कभी भटकते नहीं। उन्हें हम केवल यह कहकर कि हमारी संस्कृति अच्छी है, नहीं सिखा सकते, उन्हें तुलनात्मक रूप से दोनों बातों का, दोनों परम्पराओं का, दोनों सभ्यताओं और संस्कृतियों का बोध कराने से उनके ह्रदय में यह बात स्थापित हो सकती है। तो उन सब चीजों को हमें बहुत अच्छे ढंग से समझाना पड़ेगा और यह तभी संभव है जब की आज की नई पीढ़ी साधु – संतों के समागम में आए धर्म का सच्चा मर्म जाने, धर्म के पाठ को सीखें और अपने जीवन को तदनुकूल ढालने का प्रयास करे। अध्यात्म और धर्म के बल पर ही हम अपनी सांस्कृतिक चेतना को जगा कर स्थिर कर सकते हैं।
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