मैं जीवन में गृहस्थ आश्रम में रहकर क्या करूँ कि मैं आप जैसी बन सकूँ?
आप इस भव में तो हमारे जैसी नहीं बन सकतीं। लेकिन शास्त्र कहते हैं कि जो पात्र दान और जिन पूजा करता है वह अपनी आत्मा का उत्कर्ष करके भावी जीवन में मुनि जैसा क्या, तीर्थंकर जैसा बन सकता है। तीर्थंकर भी बन सकता है।
आप सब के चिंतन के लिए मैं एक बात कहना चाहता हूँ, आप २४ तीर्थंकरों के अतीत जन्मों को पलट कर देखें। उनके पिछले १० भवों में जितने भी मनुष्य भव थे, उनमें वे जब तक गृहस्थ अवस्था में रहे, हर भव में उन्होंने बड़ी निष्ठा पूर्वक जिन पूजा और पात्र दान का कार्य किया। यह उसकी महिमा है। यह करते रहो, व्रत संयम को अंगीकार करो। अभी व्रती बनने के राह पर आगे बढ़े हो, निष्ठा पूर्वक व्रती बन जाओ। महाव्रत्ती न बन सको तो कोई बात नहीं, अणुव्रती बनो और अंतिम लक्ष्य सल्लेखना का ले करके अपने इस पर्याय का उद्धार करो। एक दिन भवसागर से पार उतरने का अवसर ज़रूर आयेगा।
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