शंका
आज इस वर्तमान भौतिकता की चकाचौंध में माला फेरने में मन लगता नहीं और स्वाध्याय करने में ध्यान लगता नहीं। फिर युवा वर्ग अपने आप को धर्म के प्रति, गुरु के प्रति कैसे स्थिर बनाएँ? कैसे अपने चित्त को संयमित करें, अपना कार्य भी संपादित करें और अपने आपका कल्याण भी करें?
समाधान
युवा वर्ग में एक बार सत्संग का रस लग जाए तो बाकी सब चीजें अपने आप हो जाएगी। सत्संग से ह्रदय में परिवर्तन आता है और हृदय का परिवर्तन व्यक्ति के जीवन के परिवर्तन का आधार बनता है।
Leave a Reply