बहुत पीड़ा इस बात की है कि हमारे देश से माँस निर्यात के लिए करीब डेढ़ करोड़ पशु प्रतिवर्ष काटा जा रहा है। जैन समाज, अहिंसक समाज और साधु समाज को इसमें क्या करना चाहिए, किस प्रकार से ये रोका जाए?
एक बहुत गम्भीर मुद्दा है और हमारे देश के लिए तो बहुत ही ज्वलंत है। यह देश, जहाँ से अहिंसा का संदेश पूरे विश्व में गूंजा उस देश से यदि माँस का निर्यात हो तो यह पूरे देश के लिए कलंक है।
१९९५ से लेकर २००० तक इसके विरुद्ध पूरे देश में व्यापक आंदोलन चला, आप भी उस में सम्मिलित थे। हम लोग मध्यप्रदेश में थे, माँस निर्यात विरोध परिषद के तत्वावधान में पूरे देश में धरना प्रदर्शन हुए उसका सुपरिणाम यह आया कि अनेक राज्यों ने अपने-अपने यहाँ अशासकीय संकल्प पारित करके घोषणा की कि हमारे प्रदेश से माँस का एक कण भी निर्यात नहीं होगा लेकिन यह पर्याप्त नहीं है, इसमें हमें अपने पूरे राष्ट्रीय स्तर पर एक अभियान चलाने की जरूरत है। इस विषय में १९९९ में जब मैं नेमावर में गुरु चरणों में था तब मेरी उनसे चर्चा हुई तो उन्होंने एक बात कही और उसी पर हमें ध्यान देना चाहिए क्योंकि हम जैन समाज संख्या में बहुत कम है। इस कार्य के लिए जैसा मूवमेंट पूरे देश में उत्पन्न होना चाहिए वैसा उत्पन्न होता नहीं दिख रहा है। जो भी उनकी दिव्य दृष्टी रही होगी, उन्होंने कहा कि ‘अब हम अपनी शक्ति विरोध की जगह रक्षा में लगायें। हम माँस निर्यात के निषेध में शक्ति लगाने की जगह पशु रक्षा, प्राणी रक्षा को बढ़ाने के लिए गौशाला खुलवाने में लगाएँ तो ज़्यादा अच्छा है’ और इसका ये सुपरिणाम है कि गुरुदेव के आशीर्वाद से देश में गौशाला चल रही हैं, जहाँ १३७ गोशालायें तो दयोदय महासंघ से रजिस्टर्ड हैं। अन्य भी अनेक गोशालायें हैं जहाँ पशुओं को त्राण मिल रहा है, वे अपने जीवन का पूरी तरह से निर्वाह कर रहे हैं।
हमें इस दिशा में अभियान चलाना चाहिए व्यापक स्तर पर। यह केवल जैनियों के लिए नहीं, यह तो पूरे देश के लिए है क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ गाय है। गाय के माँस का निर्यात हो क्यों रहा है? उसके पीछे कहीं न कहीं गौ भक्त और अहिंसा प्रेमी भी जिम्मेदार हैं। क्योंकि गोवधकों के पास पशु को पहुँचाने वाले गोपालक ही हैं, पशु प्रेमी ही हैं। यदि उन पर नियंत्रण हो जाए तो ये सारे कार्य बहुत सहजता से संपन्न हो सकते हैं।
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