युवा भटक जाए तो कैसे सुधारें?

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शंका

समाज के लड़के धर्म से भटक जायें एवं गंदी आदतों में लिप्त हो जाएं तो उनके माता-पिता उन्हें कैसे सुधारें, इसका उपाय बताएँ?

समाधान

बच्चे अगर भटकते हैं और उनको सुधारना माँ-बाप की चिन्ता होती है। दरअसल यदि हम प्रारंभ से बच्चों को ठीक ढंग से सम्पर्क में रखें तो बच्चों को बिगड़ने की सम्भावना कम हो जाती है। गलती तब होती है कि जब प्रारंभिक अवस्था में आप अपने बच्चों को पढ़ाई-लिखाई और दुनियादारी के कार्यों में busy (व्यस्त) कर देते हैं उनको धार्मिक संपर्कों और समागमों से दूर रखते हैं। फिर बड़े होने के बाद बच्चों की एक अपनी दुनिया बन जाती है और वह ऐसे कार्यक्रमों से अपने आप को दूर रखने लगते हैं तो उनको जोड़ना बहुत कठिन हो जाता है। बच्चे अगर बड़े हो गए और भटक गए तो mature (परिपक्‍व) बच्चों को समझाना बहुत मुश्किल होता है। उनको समझाने का तो मैं एक ही उपाय समझता हूँ किसी तरह से गुरुओं से उन्हें जोड़ दें। गुरुजन उन्हें यदि तरीके से समझायें तो बहुत फर्क पड़ेगा। 

आपको एक उदाहरण बताऊँ, दिल्ली की एक माँ जी आईं अपने परिवार के साथ। उन्होनें अपनी बेटी की तरफ इशारा करते हुए मुझसे कहा कि ‘मेरी बेटी को समझाइए, वह वेस्टर्न कल्चर की ओर बहुत झुकाव रखती है।’ मैंने उस बेटी को बैठाया, उससे बात की, केवल १० मिनट बात की। मैंने उससे वेस्टर्न कल्चर के बारे में पूछा और फिर मैंने उसके धर्म के विषय में बात की। जब मैंने उसको उसकी बात तार्किक तरीके से समझाई तो उसने कहा ‘महाराज जी, आपने मेरे सारे कंसेप्ट क्लियर कर दिए। अब से आप जो बोलोगे वही मैं करूंगी’ और संकल्प ले कर चली गई। 

आप ऐसा ही करें, गुरुओं के पास किसी तरीके से अपने बच्चों को लाएँ। अगर समय से उनको ठीक मार्गदर्शन मिल जाए तो बच्चे बदलते हैं। मैंने एक और अनुभव पाया कि बड़े बच्चों को परिवार के लोग बार-बार अगर धर्म के नाम पर टोकते हैं तो बच्चे प्राय: बिदक से जाते हैं। वह धर्म से और दूर हो जाते हैं। मैं एक स्थान पर था, वहाँ पर हमारा चतुर्मास चल रहा था। एक परिवार में नियमित चौका लगता था, पूरा घर धर्मात्मा लेकिन उस घर का एक बड़ा लड़का धर्म से बहुत दूर। मेरा एक दिन आहार हुआ, संयोग से वह लड़का आहार देखने आ गया और देखने आया तो मैंने उसको अपना कमंडल पकड़वा दिया। अब उसे मुझे छोड़ने तो आना ही पड़ेगा, जैसे ही छोड़ने आया, आ के बैठा नहीं कि सारे परिवार के लोग एक साथ एक दम टूट से पड़े, ‘महाराज! इसको बोलें कि ये धर्म करे, धर्म करेगा, धर्म करे….। सबको शान्त किया और कहा- “तुम लोग जाओ और आज के बाद से कोई भी इसको धर्म करने के लिए मत बोलना।” जब सब चले गए उस लड़के से पूछा “क्या बात है भाई, तुम धर्म से इतना दूर क्यों रहने लगे?” ‘महाराज जी, सुबह से शाम तक सब के प्रवचन सुन-सुन कर के मेरे को धर्म से एलर्जी हो गई।’ ये उसके शब्द (word) थे – ‘मुझे धर्म से एलर्जी हो गई। दादी से लेकर मेरी छोटी बहन तक सब कहते हैं -तू तो नास्तिक है, तू नरक जाएगा, तू ऐसा करेगा वैसा करेगा -तो मैं सोचता हूँ मैं नरक ही जाकर देख लूँगा।’ फिर मैंने उसको प्रेम से समझाया और आज यह पोजीशन है कि वह लड़का बिना अभिषेक के मुँह में पानी नहीं डालता। मैं यह 1991 घटना की बता रहा हूँ। 

व्यक्ति को ठीक ढंग से समझाना पड़ेगा, ठीक ढंग से ट्रीट करेंगे तो सारे परिणाम अपने आप आ जाते हैं।

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