भौतिकता चकाचौंध एवं विलासता से भरे इस संसार के दौर में हम अपना वैराग्य एवं संयम को कैसे मजबूत करें एवं ऐसा क्या करें उसमें किसी प्रकार का दोष ना लगे?
हमारे गुरुदेव ने एक दिन बहुत अच्छी बात कही थी की हम लोगों का जो साधकों का जीवन हैं, वह तार पर चलने वाले व्यक्ति की तरह है |
थुबोनजी में,1987 में उन्होंने एक बार कहा था की तार पर चलने वाले जो लोग होते हैं ना बड़े बैलेंस के साथ चलते हैं, एक-एक कदम चलते-चलते और लोग तालियाँ बजाते हैं पर वह उनकी तरफ नहीं देखते | उसका लक्ष्य कहाँ, उसकी दृष्टि कहाँ रहती है अपने टारगेट के प्रति अपने लक्ष्य के प्रति, कितने लोग ताली बजा रहे हैं,क्या कर रहे हैं उसे कोई लेना देना नहीं, मुझे क्या करना यह लेना देना है, क्यों? अगर वह इधर-उधर ताली बजाने वालों की तरफ देखा,उसका संतुलन खोया और बंटाधार हुआ, फिर उल्टी ताली बजने लगेगी |
इसी प्रकार आज जिसके हृदय में वैराग्य है वह इस वातावरण से अपने आप को अप्रभावित रखते हुए अपने वैराग्य को सुरक्षित रखना चाहता है तो उसका केवल एक और केवल एक ही उपाय है वह है लक्ष्य पर ध्रुव दृष्टि अपने लक्ष्य पर दृष्टि रखो बाहर का वातावरण तुम्हें प्रभावित नहीं करेगा और जो इंसान अपने लक्ष्य से विमुख हो जाता है वह एकांत में भी भटक सकता है इसलिये दृष्टि अपने लक्ष्य पर रखना चाहिए |
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