आजकल के समय में बच्चों को कैसी परवरिश दी जाए?
मैंने कई बार बच्चों के परवरिश पर अपना पूरा प्रवचन दिया, आज बोलूँगा तो रिपीटेशन (repetition) हो जाएगा। लोग जो प्रवचन नियमित सुनते हैं, आप भी सुनते हैं, कान से सुनते हैं, थोड़ा अन्दर से सुनो।
माँ-बाप बहुत चिंतित होते हैं बच्चों की परवरिश को लेकर, होना स्वाभाविक है लेकिन ध्यान रखिए बच्चों को अच्छा बनाने के लिए आपको पहले खुद को अच्छा बनाना होगा। अच्छे मां-बाप ही अच्छे सन्तान के जन्मदाता बन सकते हैं। अगर सन्तान को अच्छा रखना है, तो आप खुद को अच्छा रखें। संक्षेप में चार बातें आप सब से करता हूँ-
बच्चों के लिए सबसे पहले आप अगर अच्छा रखना चाहते हैं तो आप स्वयं एक आदर्श उदाहरण बनें। बच्चों के सामने आप ऐसा आचरण करें, खुद का आचरण इतना अच्छा रखें कि बच्चों को लगे कि मेरे माँ-बाप से अच्छा इस संसार में कोई इंसान ही नहीं है। कितने माँ-बाप हैं जिन्हें यह गौरव प्राप्त हुआ हो? मेरे सम्पर्क में एक सज्जन है, उन्होंने एक दिन रोती आँखों से मुझसे कहा- महाराज, मेरी बेटी, जो लंदन से M.S. करके आई है, से पूछा- ‘बेटी तेरे लिए लड़का ढूंढना है, कैसा ढूंढूं?’ लड़की ने छूटते ही कहा ‘पापा आप अपने जैसा लड़का ढूंढ लीजिए, मेरे लिए पर्याप्त होगा क्योंकि मुझे आपसे अच्छा कोई इंसान नहीं दिखता।’ कितने माँ-बाप हैं जिनको यह गौरव प्राप्त है कि उनके बच्चों के लिए उनके माँ-बाप सबसे अच्छे हों। कई जगह यह तो देखने में आता है कि बच्चा अन्दर ही अन्दर कहता है- ‘हमारा बाप बड़ा खड़ूस है, माँ बड़ी अड़ियल है।’ ये जो चीजें हैं, ये हमें खुद को सुधारना होगा, पहले माँ-बाप अपने अन्दर परिवर्तन लायें। अगर आप यहाँ बदलाव लाते हैं तो आगे बहुत कुछ बदलाव हो सकता है।
नंबर दो- बच्चों की भावनाओं का कद्र करें, चीजें उन पर थोपे नहीं। बड़े होने के नाते कई बार बच्चों को एक बार न कर दिया तो फिर ना! जहाँ न करना है, न करिए लेकिन कहीं उनकी जो भावनाएँ हैं उनको एकदम से कुचलिए भी मत। मैं मध्य प्रदेश में था, राहतगढ़, सागर का एक परिवार आया, उनके साथ उनके दो बच्चे थे और आने के बाद उन्होंने एक वाक्या बताया। ‘आज हम लोग घर से चले तो सोचा था आहार के टाइम तक पहुँच जायेंगे। लेकिन हम लोगों को करीब आधा घंटा लेट हो गया।’ ‘कारण क्या था?’ ‘घर से चले तो बिटिया की भी इच्छा थी कि हम महाराजजी के दर्शन के लिए चलेंगे। रविवार का दिन था और सोमवार को उसका पेपर था। हम ने मना कर दिया कि ‘नहीं, हम लोग जाएँगे, चार-पांच घंटे तो आने जाने में लग ही जाएँगे, तुम यहीं रहो, तुम्हारा पेपर है।’ ‘नहीं पापा, मैंने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली है, एक बार महाराज के दर्शन हो जाएँगे तो मुझे इंस्पिरेशन (inspiration) मिलेगा, मेरे पेपर्स और अच्छे जायेंगे।’ ‘कह दिया न तुम्हें नहीं जाना।’ कह तो दिया महाराज जी, हम चले, वह बिल्कुल मायूस हो गई और २० किलोमीटर तक मेरी बिटिया का चेहरा मेरी आँखों में झूलता रहा। जिस मायूसी के साथ वह घर पर रुक गई थी कि मैंने उसे सख्त हिदायत देकर कह दिया था कि तुम्हें नहीं जाना, कल तुम्हारा पेपर है। मुझसे रहा नहीं गया, मैंने गाड़ी बैक की, बैक करके सीधा घर गया और बोला ‘बेटी सॉरी, गलती हो गई, तुम्हारी इच्छा को हम दबा रहे थे, चलो तुम बैठो गाड़ी में चलो।’ जैसे ही कहा ‘वाह पापा’ वो एकदम लिपट गई, उसकी खुशी का कोई पारावार नहीं रहा।’ कितने माँ-बाप हैं जो बच्चों के लिए ऐसा आदर्श प्रस्तुत करते हैं। ‘नहीं, मैंने कह दिया ना, गलत बात पर भी मना कर दिया तो मना’ क्योंकि हम बाप हैं या माँ। यह पेरेंटिंग का सही तरीका नहीं है।
नंबर ३- बच्चों को उनकी सीमा का बोध करायें, उनकी सीमाएं क्या हैं? इस चीज का एहसास, आभास प्रारंभ से होना चाहिए। ‘यह तेरी बाउंड्री है इस बाउंड्री में तुझे जो करना है कर, इस बाउंड्री को क्रॉस नहीं करना है।’ आजादी युक्त अंकुश रखें। उनकी आजादी यह है कि बाउंडरी के भीतर तुझे जितना घूमना है घूमो, जो करना है करो, बाउंड्री क्रॉस नहीं कर सकते जैसे पेड़ में ट्री गार्ड होता है ना। ट्री गार्ड क्यों लगाए जाते हैं? पेड़ की सुरक्षा के लिए लेकिन पेड़ से एकदम चिपका के नहीं लगाया जाता है, थोड़ा डिस्टेंस रखते हैं। बच्चों पर बहुत ज़्यादा नियंत्रण रखोगे तो भी बच्चे बिगड़ जायेंगे और एकदम खुला छोड़ दोगे तो भी गड़बड़ाएँगे। आजादी युक्त अंकुश उनकी सीमा का आभास कराते हुए यदि आप सीमा को दिखाते हुए बच्चों को कराएँगे तो कहीं कोई किसी भी प्रकार की दुविधा उपस्थित नहीं होगी
चौथी बात थोड़ा बच्चों पर भरोसा भी करो। अधिकतर माँ-बाप को अपने बच्चों पर बिल्कुल भरोसा नहीं होता या फिर अन्धा भरोसा होता है, दोनों गड़बड़ है। उन पर भरोसा रखें, विश्वास करें उनका इस तरह से लालनपालन करें कि वो भटके नहीं। watch भी करें, देखें भी कि वह क्या कर रहा है, किस तरह की प्रवृत्तियाँ कर रहा है, इन बातों को ध्यान में रखेंगे तो बहुत कुछ बच्चों में अच्छा आएगा। बच्चों को एकदम कंट्रोल तो रखना ही चाहिए कि यह तुझे करना और यह नहीं करना है पर एक बात और है कि बात-बात में टोका टाकी कम करें। १० गलती में एक बार टोकें, एक गलती में १० बार न टोकें, यह भी बच्चों के साथ कभी-कभी बहुत दिक्कत होती है। बार-बार आप लोग टोकने लगते हैं तो बच्चे कहते हैं कि मम्मी तो बस ऐसे ही बड़बड़ करते रहती है। पापा की तो आदत ही ऐसी है, वो आपको अप्रासंगिक बना देगा। बच्चों की परवरिश करने के लिए माँ-बाप को खुद के लिए तैयार करना बहुत आवश्यक है। जिनको इसके विषय में और विस्तार से जानना है तो मैंने अभी उदयपुर में एक प्रवचन किया था “कैसे बनाएँ बच्चों का भविष्य” प्रवचनमाला, उसे देख लें।
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