बँटे हुए समाज को कैसे एक करें जिससे धर्म और धर्माराधन सुरक्षित रहे?
मुट्ठी भर लोग हैं, लेकिन मुट्ठी भर लोग भी बँटे हुए हैं। मुट्ठी भर लोग अगर मुट्ठी को बाँधकर रखें, तो बहुत कुछ हो सकता है। मुट्ठी की ताकत क्या है, इसका अनुमान २४ अगस्त २०१५ को ‘धर्म बचाओ आन्दोलन’ के रूप में पूरे देश ने लगा लिया। मैं तो इतना ही कहना चाहूँगा समाज के सभी लोगों से, जिनकी जो आस्था है वे उस आस्था के अनुरूप चलें, लेकिन जैनत्व और जैन धर्म के नाम पर सब एक होने के लिए संकल्पित हों। जब जैनत्व की बात हो, जैन धर्म की बात हो, जैन समाज की बात हो तो हम एक हों, हमारी आवाज़ एक हो। ऐसा होता है, तो बहुत कुछ अच्छा हो सकता है लेकिन क्या कहूँ, जैन समाज बुद्धिजीवियों की समाज है। बुद्धिजीवी बड़ी मुश्किल से इकट्ठा होते हैं। अन्य लोगों को एकत्र करना सरल है, लेकिन बुद्धिजीवियों को एकजुट करना बहुत मुश्किल होता है। एकजुटता सबके हृदय में आनी चाहिए। यह प्रयास करना चाहिए। युग की माँग है, अन्यथा हम अपना वजूद खो देंगे। समय रहते समाज अगर इस विषय पर गम्भीर नहीं होती है, तो इसके भयानक दुष्परिणाम हमारे सामने आएँगे। हमें जैन और जैनत्व को सुरक्षित रखना है, तभी जैन धर्म की वास्तविक प्रभावना होगी और इस दिशा में सभी को सामूहिक रूप से प्रयास करना चाहिए।
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