‘मनुष्य मरकर मनुष्य’ और ‘पशु मरकर पशु’ कथन कितना सत्य?

150 150 admin
शंका

आज कई जैन श्रावक शान्ति की खोज में अन्य मत की ओर आकर्षित होकर ये मानने लगे हैं मनुष्य मरकर मनुष्य बनता है और पशु मरकर पशु की योनि में जाता है। कृपया मार्ग दर्शन करें।

समाधान

एक दर्शन है जिसका आजकल दिनों-दिन काफी ज्यादा प्रभाव बढ़ रहा है। उनका एक सिद्धान्त है सिगाल वही सिगाल है। जो, जो है, वो वही होगा। आप मनुष्य हैं तो चाहे कुछ भी करें मनुष्य ही बनेंगे। हो सकता है कि ऊपर नीचे हों। लेकिन जैन दर्शन के अनुसार ऐसा नहीं है। किसी योनि में, किसी पर्याय में, किसी प्राणी का जन्मजात अधिकार नहीं है। जैन दर्शन की यही सबसे बड़ी विशेषता है जो उसे संसार के सारे दर्शनों में एक विशिष्ट स्थान प्रदान करता है, वो है- प्रत्येक प्राणी की समानता! हर आत्मा की सत्ता समान है। अप्पा सो परमप्पा ये जैन दर्शन का विशिष्ट उद्घोष है। आत्मा और परमात्मा में कोई मौलिक अन्तर नहीं है। यदि अन्तर है, तो उसके विकार का है। जिसके भीतर विकार है वो आत्मा और जो विकार मुक्त है वह परमात्मा। संसारी आत्मा विकार ग्रस्त है इसलिए आत्मा और वह अपने कर्मो के निमित्त से जैसा कृत्य करता है, चाहे मनुष्य हो, चाहे पशु-पक्षी हो, चाहे पेड़-पौधे हों, चाहे कीड़े-मकोड़े हों, देव हों या नारकी। वे जैसा कृत्य करते हैं उनको वैसा परिणाम भोगना पड़ता है। एक मनुष्य भी कल एक कीड़ा बन सकता है और एक कीड़ा भी श्रेष्ठ मनुष्य बन सकता है। इसी चीज को ध्यान में रख कर चलें। हमारे आचार्य समन्तभद्र महाराज ने बहुत अच्छी बात कही:

श्वापि देवोऽपि देवः श्वा, जायते धर्म किल्विषात्।

काऽपि नाम भवेदन्या, सम्पद्धर्माच्छरीरिणाम्।।

मतलब कुत्ता देव बन सकता है और देव कुत्ता बन सकता है ये धर्म का प्रताप है। धर्म के प्रभाव से कुत्ता देव बन सकता है, तो पाप के परिपाक से देव भी कुत्ता बन सकता है। अँग्रेजी से इसको ज्यादा अच्छे समझ सकते हैं। कुत्ते को क्या बोलते है अँग्रेजी में? उसकी स्पेलिंग क्या है? DOG! और देव को क्या बोलते हैं? इसकी स्पेलिंग क्या है?GOD!  तो DOG को पलट दो तो होगा-GOD और GOD को पलट दो तो होगा DOG! जो उल्टी जिन्दगी जियेगा वो DOG बन जायेगा और सीधी जिन्दगी जियेगा वो GOD बन जायेगा। ये हर प्राणी के साथ ऐसी स्थितियाँ है। चाहे जैसा बन सकता है। 

 भ्रम में मत रहना। यदि तुमने अपने कर्म नहीं सुधारे तो तुम्हारी हर स्तर की दुर्गति हो सकती है। इसलिए इन बातों से ज्यादा प्रभावित नहीं होना चाहिए। कई बार लोग जब धर्म उपदेश सुनते हैं तो जो हमारे मूल्य (values) हैं उनमें समानता दिखती है और उस समानता से प्रभावित होकर के हम कहते हैं कि कितनी अच्छी बात कही है! कहीं की भी हो अपनानी चाहिए। 

जहाँ तक मानव मूल्यों (HUMAN VALUES) की बात है सब धर्मों में समानता मिलेगी। लेकिन हमारे धर्म में दर्शन का लक्ष्य है, VALUES प्राप्त करना नहीं है, ये तो केवल मानवीयता की बात है। धर्म केवल हमें मनुष्य बनने की बात नहीं सिखाता, धर्म केवल हमें मानवता का पाठ नहीं पढ़ाता। धर्म मानवता से ऊपर उठकर भगवत्ता का पाठ पढ़ाता है। तो मानवता से ऊपर उठकर अपनी भगवत्ता को कैसे प्रकट करें? वह आप तब समझ सकते हैं जब दर्शन की गहराई में जायेंगे। इसलिए जैन दर्शन की इस गहराई को समझिये, जो प्रत्येक प्राणी की स्वतन्त्र सत्ता को स्वीकार करके उसकी सर्वोच्च मुक्ति तक की उद्घोषणा करता है, तो वो मुक्ति आप प्राप्त कर सकते हैं, उसे समझें। 

ये केवल जैन दर्शन के माध्यम से ही जाना जा सकता है अन्य दर्शन से नहीं। संसार के सारे दर्शन जहाँ आकर रुकते हैं, सच्चे अर्थों में जैन आध्यात्म वहाँ से शुरू होता है। इसलिए हमें इन पर भी ध्यान देने की जरूरत है। आज की नई पीढ़ी के लोग बहुत तेजी से इस तरह की बातों से आकर्षित होने लगे हैं। और कुछ लोग भ्रमित भी होने लगे हैं, लेकिन ये भ्रमित होना अच्छी बात नहीं है। गलती उनकी भी नहीं, हमारे समाज की है, हमारे धर्म के प्रवर्तकों की है। जैन धर्म का सार इतना श्रेष्ठ है लेकिन उसकी ठीक ढंग से Marketing (प्रचार – प्रसार) नहीं की जा सकी और सही Marketing के अभाव में दूसरे लोग अपनी बात को बहुत अच्छे तरह से प्रस्तुत करके एक Brand Image बनाते जा रहे हैं जिससे आपकी अपनी चीज खोती जा रही है। आपके बीच के ही लोग उधर आकर्षित हो रहे हैं। ये बात ठीक नहीं है। हमें जरूरत है आज के बुद्धिजीवी वर्ग को धर्म समझाने की, कि वाकई में जैन धर्म क्या है? इसे जानो। एक बार इसे जान लोगे तो तुम्हें दुनिया का कोई दर्शन प्रभावित नहीं कर सकता है। 

मैं आपसे केवल इतना कहता हूँ कभी किसी धर्म का अनादर मत करो। कभी किसी धर्म की श्रेष्ठता और कनिष्ठता की बात मत करो। लेकिन यदि तुम्हें जैन धर्म में जन्म लेने का सौभाग्य मिला है, तो उसकी मौलिकता को पहचानो और उसे जीवन में उतारने की कोशिश करो। दुनिया के अनेक ऐसे लोग जिन्होंने जैन धर्म को जाना तो उनके हृदय में जैन धर्म की जो श्रद्धा जगी वो असाधारण है। मेरे सम्पर्क में रीवा विश्वविद्यालय के एक कुलपति डॉ. ए.डी.एन. वाजपेयी, भारत के बहुत बड़े अर्थशास्त्री आये। जैन धर्म के प्रति उनके मन में अगाध श्रद्धा थी। उन्होंने रीवा विश्वविद्यालय में आग्रह पूर्वक ले जाकर हमारा एक प्रवचन भी कराया। उन्होंने एक बार कहा कि ‘जबसे उन्होंने जैन धर्म और दर्शन को जाना है उन्हें लगा कि जैन धर्म से श्रेष्ठ कोई धर्म नहीं और जैन दर्शन से अच्छा कोई दर्शन नहीं।’ उन्होंने कहा कि ‘बावन दिन तक उन्होंने रात्रि भोजन का त्याग किया और मौन धारण किया तब समझा कि जैन जीवन शैली कितनी उत्कृष्ट जीवन शैली है! जैन दर्शन की मूलभूत अवधारणाएँ कितनी अच्छी हैं!’ उन्होंने कहा कि अब वे तो केवल एक ही भावना भाते हैं कि अगर कहीं पुनर्जन्म हो तो अगला जन्म जैन धर्म में धारण करें। ये वो ही कह सकते हैं जो जैन धर्म को जानते हैं। वे कोलकाता में मेरे पास आये थे तो मैंने उनसे कहा कि “वाजपेयी साहब! अब आपको जैन धर्म के लिए अगला जन्म लेने की जरूरत नहीं है जैन तो आप बन ही चुके हो। अब जैन बनने के लिए अगला जन्म मत लो ‘जिन’ बनने के लिए अगला जन्म लो। ताकि अगले जीवन का उद्धार हो सके।” बन्धुओं ये सही मार्ग है इस मार्ग को जो व्यक्ति समझता है, वही अपना कल्याण कर सकता है।

Share

Leave a Reply