भरत चक्रवर्ती का आदर्श कैसा था?
भरत घर में वैरागी थे, उसका रहस्य मालूम है? भरत के चरित्र को पढ़कर के देखोगे तो पता लगेगा। वह वैरागियों के चरण अनुरागी थे और जो वैरागी का चरण अनुरागी होता है सच्चे अर्थों में उसी के हृदय में वैराग्य प्रकट होता है।
एक प्रंसग आता है। एक रोज भरत चक्रवर्ती अपने घर के आंगन में किसी मुनिराज की पड़गाहन की प्रतीक्षा में खड़ा था। संयोग कुछ ऐसा बना कि उस दिन किसी भी महाराज के पड़गाहन का सौभाग्य उसे नहीं मिल सका। वह अपने भाग्य को कोस रहा है कि मैं कैसा क्षीण पुण्य, कितना हतभाग हूं कि आज मुझे किसी निर्गन्थ मुनि को आहार दिए बिना अपने गले से कौर नीचे उतारने का भागी बनना पड़ेगा और वो ऐसा कुछ सोच ही रहा था, अपने मन को कोस ही रहा था कि तभी आकाश मार्ग से दो चारण रिद्धिधारी मुनिराज उसके आंगन में उतर गए। भरत झूम उठा, भरत चक्रवर्ती ने भक्ति से पड़गाहन किया, तीन प्रदक्षिणा दिया, शुद्धि बोलकर अंदर ले गया। चौरासी खंड के महल में भरत चक्रवर्ती थे, इतना ऊंचा महल, लिफ्ट से नहीं गया। सीढियाँ चढ़ -चढ़कर के गया, महाराज जी भी साथ में थे। रास्ते में कहता है, महाराज! जैसी कुटिल मेरे इस महल की सीढ़ियां है, मेरा मन उससे कहीं कुछ ज्यादा कुटिल है। जितनी कुटिलता इन सीढ़ियों में है उससे ज्यादा कुटिल मेरा मन है, आज आपके चरण सानिध्य से उसमें कुछ सरलता आएगी ऐसा मेरा विश्वास है। यह भरत चक्रवर्ती का आदर्श है, उसे आत्मसात करो, जीवन धन्य होगा।
Leave a Reply