पिच्छी परिवर्तन कैसे, कहाँ, कब और क्यों होता है?

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शंका

गुरुओं का पिच्छी परिवर्तन कैसे, कहाँ, कब और क्यों होता है? मैं गीत लिखता हूँ इसलिए मुझे जानना है कि उनके गुण कैसे-कैसे है?

समाधान

पिच्छी दिगम्बर मुनिराज का एक उपकरण है। ये हमारे संयम का उपकरण माना जाता है। इस पिच्छी के बिना कोई साधु कदम भी नहीं चल सकता है।

अब सवाल है कि ये मयूर पंखों की पिच्छी क्यों रखी जाती है? मयूर पंखों की पिच्छी रखने के पीछे एक खास प्रयोजन है; इसकी पाँच विशेषताएँ हैं। 1-ये धूल को नहीं पकड़ती है; 2-ये पसीने को नहीं पकड़ती है, 3-इतनी Soft (कोमल) होती है कि आप आँख में डाल दो तो पानी न आये, 4- ये बहुत Light weight (हल्की वजन) होती है; 5-एकदम सुकुमार (मृदुल) होती है। ये पाँचों चीजें प्राकृतिक रूप से मोर पंखों में होती हैं अन्यत्र में नहीं पाई जाती है। इसलिए मोर के पंखों को रखा जाता है। 

मोर के पंखों को ही क्यों रखा जाता है? इसके पीछे और भी कारण हैं। अन्य पंखों में भी ऐसी कोमलता कुछ अंशों में आती है लेकिन मोर पंखों को रखने का दूसरा प्रयोजन ये भी है कि संसार में मोर ही एक ऐसा प्राणी है जो अपने पंखों को खुद उखाड़कर अलग करता है। जैसे आपके बाल बढ़ जाते हैं तो आपको तकलीफ होती है, तो आप बाल कटवा लेते हैं। ऐसे ही मोर के पंख बढ़ जाते हैं उसे उड़ने में बाधा होती है, तो वर्ष में एक बार अपने पंखों को उतार के अलग कर देता है। प्राकृतिक रूप से प्राप्त हो जाते हैं इसमें किसी प्रकार की हिंसा नहीं है। समस्त स्तनधारी प्राणियों में मोर ही एक ऐसा प्राणी है जो रति कर्म नहीं करता है। ऐसा कहते हैं कि मोर जब नृत्य करता है अपने पंखों को फैलाकर तो वह अपने पाँव को देखकर रोता है। उसके पाँव बहुत सुंदर नहीं होते है। तो मोर जब रोता है, तो उसके आँसू के कणों को मोरनी झेलती है जिससे प्रजनन होता है। रति कर्म से रहित होता है मोर! शायद इसलिए ब्रह्मचर्य के आराधक मुनियों के हाथ में मोर पंख का विधान है- वह अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य का प्रतीक है।

किसको मिल सकती है पिच्छी? साल में एक बार बदलते हैं, क्यों? साल भर उसका उपयोग करते-करते वह घिस जाती है। जब घिस जाती है, तो मुनि महाराज को बदलना है। श्रावक ही मुनियों को देते हैं, श्रावक लोग संयम का उपकरण देते हैं; और जो हमें देता है उन्हीं में से हम किसी को आशीर्वाद स्वरूप अपनी पिच्छी दे देते हैं। अब किसको देते हैं, इसकी अलग-अलग संघों की अलग-अलग व्यवस्था है। हमारे संघ में हमारे आचार्य श्री कहते हैं, ये संयम का उपकरण है संयम के क्षेत्र में जो आगे बढ़े, उसी को दो। आओ जिसको-जिसको नम्बर लगाना है, लगाओ। पिच्छी एक है जितने अच्छे दाम में आयेगी उतने अच्छे दाम में देंगे। दाम पैसों का नहीं, संयम का!

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