शंका
मैं आहार बना तो लेती हूँ परन्तु आहार देने का भाव नहीं होता, ऐसा क्यों?
वंदना जैन, त्रिवेदीनगर
समाधान
कुछ व्यक्तियों के अन्दर अपराध बोध होता है या हो सकता है कि कभी आपने किसी साधु का अन्तराय देख लिया हो, वो डर आपको आहार देने से रोकता हो। अगर अपराध बोध है, तो गुरु के सामने प्रायश्चित्त करें और अगर डर हो तो यह सोचे कि अन्तराय तो साधु को ही आता है एवं आगे से सावधानी रखने का प्रयास करें।
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