‘किसी की किस्मत में ही लिखा होता है कि उन्हें डॉक्टर, इंजीनियर बनना है।’ यदि ये सच है, तो किसी की किस्मत में लिखा हो सकता है कि वो चोर ही बनेगा। तो जब वो चोरी करेगा तो उसे पाप क्यों लगेगा?
जो बात हम लोग कहते हैं कि ‘जिसकी किस्मत में जो लिखा होता है वही बनता है’- ये सामान्य कथन है। किस्मत में लिखा है वही बनता है, ये बात किसी अर्थ में सही है, पर किस्मत हम अपने हाथों से बना सकते हैं ये उससे ज़्यादा सही है। तो मेरी किस्मत में क्या लिखा है ये मुझे पता नहीं है। जब मैं बहुत छोटा था तो मेरा हाथ देखने वाले ने देखा, उसने हाथ देखकर बोला था कि ‘ये घर से भाग जायेगा।’ मैं निश्चित रूप से भागा हूँ, लेकिन जागा हूँ। मुझे एक सही गुरु का रास्ता मिल गया तो आज मैं कहाँ पहुँच गया! तो किस्मत की रेखा को बदला जा सकता है। हम लोग कहानियाँ पढ़ते हैं कि अंजन चोर बन गया था। वो राजकुमार था और वो बन गया चोर? गलत संगति के कारण चोर बन गया लेकिन उसी अंजन चोर को मुनि महाराज का सानिध्य मिला तो क्या हुआ? मुनि बन गया और मोक्ष पा गया। अंगुलिमाल खतरनाक डाकू था, हत्यारा था। आदमियों को मारता था और उसकी एक अंगुली की माला अपने गले में डाल लेता था। लूटपाट करता था लेकिन उसी अंगुलिमाल को एक सन्त का दर्शन हुआ और ज्ञानी हो गया और साधु बन गया।
ऐसा नहीं है कि हम किस्मत के भरोसे बन्धे बैठे रहें और जो किस्मत में होगा वही होगा। ऐसा मत सोचा कि किस्मत में लिखा है वही होता है। हम लोगों को किस्मत के भरोसे नहीं बैठना चाहिए। हमें हमेशा अच्छा करने का प्रयास करना चाहिए। हाँ, कई बार ऐसा होता है कि अच्छा करने के बाद भी बुरा होता है तब ये सोचो कि ‘मेरी किस्मत में यही लिखा था।’ समझ गए! अब चोर है, चोर-चोरी कर रहा है, उसकी किस्मत में चोरी करना लिखा है, तो फिर सब की चोरी करे? वो अपने घर में चोरी क्यों नहीं करता है? अपने रिश्तेदारों के यहाँ चोरी क्यों नहीं करता है? उसने चोरी को एक पेशा बना लिया लेकिन उस चोर को एक अच्छी संगति मिले, अच्छा सानिध्य मिले और अच्छी प्रेरणा मिले तो वो चोर भी बहुत परिवर्तित हो सकता है।
मैं जबलपुर के सेन्ट्रल जेल में गया, वहाँ मेरा प्रवचन था। प्रवचन के दौरान एक युवक २४-२५ साल का था, पूरे प्रवचन में आँसू बह रहे थे उसके, लड़का बड़ा तेजस्वी था। प्रवचन के उपरान्त वो बड़ा भावुक था। प्रवचन के उपरान्त मैं जेल का निरीक्षण कर रहा था, वो साथ में था। मेरा उस पर ध्यान गया, मैंने उससे पूछा कि आप यहाँ कैसे आये? तो उसने कहा कि ‘मैंने हत्या की थी, एक मन्त्री का मर्डर किया था।’ मैंने उसको पूछा कि “क्यों किया?” बोला कि ‘मैं भटक गया था। एक ऐसे संगठन से जुड़कर मैंने ऐसा कर लिया।’ मैंने उससे अगला प्रश्न पूछा कि आपको कौन सी सजा मिली? बोला कि आजीवन कारावास की। मैंने पूछा कि आप अपनी सजा से सन्तुष्ट हो? बोला नहीं। मैंने कहा क्यों? बोला कि मैंने जितनी बड़ी घटना को अंजाम दिया है, मैंने जितना बड़ा कुकृत्य किया है, उस हिसाब से मुझे तो फाँसी पर चढ़ा देना चाहिए, मुझे आजीवन कारावास क्यों दिया गया मैं ये सोच रहा हूँ, मुझे असन्तोष है। जेलर की तरफ मैंने देखा तो उसने कहा कि बहुत अच्छा चरित्र है आज इसका, और सब को पढ़ाता है। उसने कहा कि मैं भटक गया था। भटका हुआ व्यक्ति गलत संगति के कारण हत्यारा बन सकता है, लेकिन उसे सही राह मिल जाये तो वो पूरी समाज का उद्धारक भी बन सकता है। समझ गए इसलिए किस्मत के भरोसे मत सोचो।
किस्मत ने किसी को चोर बनाया है, तो भी उस चोर के प्रति घृणा का भाव मत रखो। भावना भाओ कि उसकी किस्मत फिर पलटे, उसकी करनी फिर सुधरे और उस चोर के भीतर भी एक अच्छा इंसान प्रकट हो जाए। उसके जीवन का कल्याण हो जाए हमेशा ऐसा सोचना चाहिए।
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