मैं हर रोज पाप करता हूँ, तो मैं भगवान की प्रतिमा के सामने कैसे जाऊँ?
निश्चित ही हर व्यक्ति के जीवन में पाप होता है और जिसके भीतर पाप या पाप का बोध है, तो भगवान से नजर कैसे मिलाए? जिसको वेदी में विराजमान भगवान में भगवान दिखते हों, उसके ही हृदय में ये प्रश्न आ सकता है। मैं ये कहना चाहता हूँ कि, यह भाव तुम्हारे भीतर का बड़ा उत्कृष्ट भाव है। इसे जगा कर रखना, बनाकर रखना और भगवान के सामने जाकर कहना कि ‘हे भगवन! मैं आपके सामने आने के लायक नहीं हूँ, आप से नजर मिलाने लायक नहीं हूँ। कहने को तो मैं आपका भक्त हूँ, कहने को तो मैं आपको पसन्द करता हूँ लेकिन सच्चाई यह है कि जिसको आप पसन्द करते हैं, उनमें से एक को भी मैं पसन्द नहीं करता हूँ। कहने को तो मैं आपको पसन्द करता हूँ, आप पाप, बुराई, पाखंड छोड़ते हैं, आप उसे पसन्द नहीं करते। आप सच्चाई, ईमानदारी, नीति, धर्म, अहिंसा और करूणा को पसन्द करते हैं। मैं उनमें से एक को भी पसन्द नहीं करता, ये मेरी दुर्बलता है। मैं पापी, मायावी, छली, कपटी और राग, द्वेष व मोह से युक्त हूँ। आज आपके चरणों में अपनी निंदा करता हूँ। मेरी सच्चाई को आप अच्छी तरह से जानते हैं, मैं रोज आपके चरणों में अपना माथा टेकता हूँ और फिर वही कार्य करता हूँ जो मुझे नहीं करना चाहिए। मुझ पापी, अधर्म, नीच को ऐसी शक्ति दो कि मैं संसार के आकर्षण से मुक्त हो सकूँ और आपके आकर्षण से बन्ध कर अपने जीवन का उद्धार कर सकूँ।”
ये भाव नित्य जगाते रहोगे, तो निश्चित सारा काम होगा।
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