भगवान का जल अभिषेक क्यों करते हैं? अरिहंत अवस्था में तो उनका जल अभिषेक का त्याग है?
अरिहंत अवस्था में जो होता है वो हम भगवान की प्रतिमा में करें ऐसा कोई जरूरी नहीं है। जिन और जिन प्रतिमा अलग है। हम जिन को तो छू भी नहीं सकते। साक्षात् जिनेन्द्र भगवान को हम आप क्या, गणधर परमेष्ठी भी नहीं छू सकते हैं। उनके आभा मण्डल का इतना तेज होता है कि कोई स्पर्श भी नहीं कर पाता है। ये तो हमारी भक्ति का अंग है।
जिन प्रतिमा का अभिषेक होता है, जिनेन्द्र का अभिषेक नहीं होता है। जिनेन्द्र तृप्त हो जाते हैं इसलिए उनका आहार भी नहीं होता है। ये अभिषेक पूजा के पूर्व आरम्भ की क्रिया है और अभिषेक के अभाव में पूजा अधूरी मानी जाती है। इसलिए पहले अभिषेक महोत्सव किया जाता है बाद में भगवान की पूजा की जाती है। तो ये जिन प्रतिमा का अभिषेक है। आगम में भगवान के अभिषेक के साथ जो अभिषेक जुड़े हैं वे हैं- जन्माभिषेक, राज्याभिषेक, वैराग्य अभिषेक और चौथा अभिषेक है जिनाभिषेक, वो जिन प्रतिमा का अभिषेक है। ये चार भगवान के साथ जुड़ते हैं और एक अभिषेक है देवाभिषेक, जो स्वर्ग में उत्पन्न होने वाले देवों के द्वारा (जो भी कोई तुरंत देव उत्पन्न होता है) उनका जन्मोत्सव मनाते हैं। उन्हें सिंहासन पर बैठाकर अन्य देव लोग उनका स्नान कराते हैं, इसको बोलते हैं देवाभिषेक। तो ये आगम का विधान है इसलिए अरिहंत भगवान का अभिषेक करने में कोई बाधा नहीं है।
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