यदि भरसक पुरूषार्थ करने के बाद तदनुरूप फल की प्राप्ति ना हो, तो क्या वह पुरुषार्थ का फल नियती का सूचक है? यदि नियती का ही सूचक है, तो फिर से पुरुषार्थ का अभिप्राय क्या है?
पर्याप्त पुरुषार्थ करने के उपरान्त भी वांछित परिणाम न मिले और सफलता न मिले, तो यह समझना चाहिए कि हमारे प्रयास में कहीं न कहीं कोई न कोई कमी है। फिर दोगुने उत्साह के साथ अपने पुरूषार्थ में जुटना चाहिए और उसे सफल बनाने का प्रयास करना चाहिए।
नियती के चक्कर में फँस करके नहीं बैठना चाहिए। हाँ, प्रयास-पुरुषार्थ तब तक करते रहना चाहिए, जब तक पुरूषार्थ व प्रयास की अन्तिम अनुकूलता या अवसर हो। तो अन्त तक, जब तक आपके पास अवसर हो या अनुकूलता हो अपने प्रयास से कभी हारना नहीं चाहिए। लेकिन, जब आपको लगे ‘अब कोई अवसर नहीं और मेरे पुरुषार्थ के बाद भी मुझे परिणाम नहीं मिले’ तो फिर ये सोचो- ‘यही मेरे भाग्य में था।’ चित्त के समाधान का यही रास्ता है।
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