जैन कुलाचार का महत्व एवं प्रासंगिकता!

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शंका

जैन कुलाचार का महत्व एवं प्रासंगिकता!

समाधान

कुल के अनुरूप किया जाने वाला, कुल के संस्कारों के अनुरूप किया जाने वाला आचार, कुलाचार कहलाता है। हमारे यहाँ एक शब्द आता है, घूंटी के संस्कार! आपने जिस कुल में जन्म लिया है, उस कुल का code of conduct (आचार संहिता) है, उसके अनुरूप आचरण होना है। जहाँ तक जैन कुलाचार का सवाल है, अगर आप जैन कुल में जन्म लिए हैं, तो आपके आचरण में अहिंसा, करुणा और दया की झलक दिखनी चाहिए और उसकी अभिव्यक्ति होनी चाहिए- मद्य, माँस, मधु के त्याग के रूप में। मद्य, माँस, मधु का त्याग तो करना ही चाहिए; यह कुलाचार का पहला अंग है। 

मादक पदार्थ हमारे जीवन के सर्व विनाश का कारण है, विज्ञान इस बात के लिए रोज चीख-चीख कर बताता है और इसी वजह से हर मादक पदार्थ पर लिखा जाता है- INJURIOUS FOR HEALTH (स्वास्थ्य के लिए हानिकारक) और गैर पढ़े-लिखे लोगों के लिए बिच्छू का या खतरे का चिन्ह बना रहता है। माँस भक्षण भी हमारे शरीर के अनुकूल नहीं है, अनेकों प्रयोगों के द्वारा यह बात सिद्ध हो गई। जहाँ तक शहद की बात है, अन्य सम्प्रदाय में शहद का सेवन किया जाता है बल्कि पूजा और प्रसाद के रूप में भी शहद का प्रयोग होता है। लेकिन जैन सम्प्रदाय में शहद का निषेध है क्योंकि शहद के उत्पादन में हिंसा होती है। आज के तथाकथित अहिंसक शहद, मधुमक्खियों को उड़ाने के बाद ली जाती है। उसके लिए भी जैन सम्प्रदाय समर्थन नहीं करता क्योंकि अन्ततः वह मधुमक्खियों की उगाल है, उनका रस है, उनका संचित धन है, उनका सर्वस्व हमें लेने का अधिकार नहीं है और उसके आश्रित अन्य सूक्ष्म जीव भी वहाँ हो सकते हैं, इसलिए शहद का प्रयोग हम नहीं करते। 

रात्रि भोजन से बचें, यह कुलाचार का एक बड़ा अंग है। पहले जैनियों की पहचान थी कि ‘ये रात में नहीं खाते।’ मुझे याद है, मैं बचपन में दूध लेने के लिए जाता था, तो ग्वाले कहते थे कि जैन लोग सियार भोंकने के बाद नहीं खाते। लेकिन आज धीरे-धीरे लोगों ने अपनी यह पहचान खोनी शुरू कर दी है। बल्कि कईयों ने तो पूरी तरह खो दी है। इसे पुनः प्रतिष्ठित करना चाहिए, यह हमारी मूल पहचान है और यह विज्ञान के द्वारा भी मान्य है। अगर आप रात्रि भोजन नहीं करते हैं, तो ज्यादा स्वस्थ रहेंगे क्योंकि रात में हमारा पाचन तन्त्र कमजोर होता है। हमारे शरीर को आराम चाहिए, पाचन तन्त्र को भी आराम चाहिए। अगर उसमें भोजन पड़ा रहेगा तो हमारे शरीर के अनुकूल नहीं होगा। 

अपने इष्ट का स्मरण और दर्शन सुलभ हों तो दर्शन अथवा पंच परमेष्ठी का सुमिरन, हमारे कुलाचार का अंग है, जो तुम्हें जैन होने का एहसास कराता है। इसी तरह पानी छान करके पीना, जो पूरी तरह वैज्ञानिक है। मैं एक घटना बताता हूँ, डॉ. शंकर दयाल शर्मा, जब भारत के उपराष्ट्रपति थे, भिलाई के एक धार्मिक कार्यक्रम में वह मुख्य अतिथि की हैसियत से गए थे। वहाँ उन्होंने जैन धर्म की वैज्ञानिकता की चर्चा करते हुए एक बड़ी बात कही कि “जब मैं मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री होता था, इंदौर की एक कॉलोनी में एक विशेष प्रकार की बीमारी फैली, ऐसी बीमारी जिससे पूरे परिवार को बुखार आता था। पर उस कॉलोनी के जैनियों में लक्षण न के बराबर दिखे। काफ़ी छानबीन की गई, तो पता लगा कॉलोनी की ओवर हेड टैंक में चिड़िया मरी पड़ी थी और उसके कारण पानी विषाक्त हो गया था और वही पानी पूरी कॉलोनी के लोग पी रहे थे, इसलिए बीमार हो रहे थे। क्योंकि जैनी पानी छान कर पीते हैं, इसलिए उनमें लक्षण कम थे।” ये हमारी पहचान है, इसका दृढ़ता पूर्वक पालन करना चाहिए। 

कुलाचार का पालन होगा तो दुराचार पनप नहीं सकेगा और यह प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह कुलाचार का दृढ़ता से पालन करें अन्यथा आप अपना गौरव खो बैठेंगे। इसलिए हर व्यक्ति को चाहिए कम से कम मद्य, माँस, मधु का तो प्रतिज्ञा पूर्वक परित्याग करें।

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