प्रायश्चित का क्या महत्त्व है?
प्रायश्चित में वो सामर्थ्य है जो हमारे पूरे पाप को साफ कर सके; बशर्ते अंतर्मन से प्रायश्चित लिया जाये और सही प्रायश्चित लिया जाए। एक दिन गुरूदेव ने कहा हम लोगों को कार्तिकेय अनुप्रेक्षा पढ़ा रहे थे, उसमें उन्होंने प्रायश्चित का फल बताते हुए कहा कि – “प्रायश्चित ग्रंथ में ऐसा आता है कि कोई मुनिराज किसी की हत्या कर दे और इस हत्या के बाद गुरु से प्रायश्चित लेकर के ध्यान में निमग्न हो जाए तो आचार्य उसकी तीन प्रदक्षिणा करके वंदना करते हैं और उस ध्यानी को केवल ज्ञान तक हो सकता है”, यह प्रायश्चित की महिमा है। “महाराज! मुनि कैसे हत्या करेंगे?” मान लो कोई व्यक्ति है, गुस्से में उसको एक धक्का दिया दीवार से टकरा गया, Head Injury (सिर पर चोट) हो गई, मर गया; मरने मे कोई देर थोड़ी लगती है, इरादतन हत्या नहीं हुई, गैर-इरादतन हत्या में भी निमित्त बन गया। प्रायश्चित से सब पापों की शुद्धि हो सकती है। ऐसा सोचकर बेखौफ होकर पाप मत करो और पाप किया है तो प्रायश्चित ज़रूर लो।
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