तत्त्वार्थ सूत्र में दस अध्याय की रचना की गई परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि छठा अध्याय हमारे आत्म कल्याण के लिए है। शेष अध्याय में आचार्य उमा स्वामी जी का क्या मंतव्य था या उनका महत्त्व बताने की कृपा करें?
छटा अध्याय ही नहीं, हर अध्याय हमारे कल्याण के लिए है। यदि हम वस्तु के स्वरूप को नहीं समझेंगे तो आत्म कल्याण तो हो ही नहीं सकता। तत्त्वार्थ सूत्र में वस्तु के स्वरुप का ज्ञान कराया गया है। छठे अध्याय में मुख्य रूप से कर्मों के आस्रव की बात की है और कैसे पुण्य-पाप कर्म हमारे जीवन से जुड़ते हैं? हमारी प्रवृत्तियों के प्रति अंकुश लगाने की बात की गई लेकिन जब तक हम व्रत-संयम को अंगीकार नहीं करेंगे, त्याग-तपस्या नहीं करेंगे, कल्याण कैसे करेंगे और वस्तु के रूप को नहीं जानेंगे, आत्मा को कैसे पहचानेंगे? इसलिए एक-एक अध्याय का एक-एक सूत्र हमारे लिये कल्याणकारी है। जब तक हम समूचे तत्त्वार्थ सूत्र को नहीं जानेंगे, वस्तु स्वरूप का ज्ञान नहीं कर सकते। वैसे छठे अध्याय पर किसी का विशेष ध्यान जाता है, तो जाये लेकिन ये न सोचे कि केवल छटा अध्याय ही पर्याप्त है। छठे अध्याय से भी वही कल्याण कर सकता है जो वस्तु स्वरुप को जानता है।
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