अनेक सभाओं में विदेह क्षेत्र के स्थान को लेकर अनेक तर्क और वितर्क हुए हैं। इस थोड़ा प्रकाश डालें। बरमूडा ट्रायंगल, जहाँ से अनेक विमान निकल कर वापस नहीं आते हैं, उसके विषय में कहा जाता है कि वह बरमूडा ट्रायंगल ही हमारा विदेह क्षेत्र है? क्या हम जैन उसमें कुछ तथ्य स्थापित कर सकते हैं?
केतन दोशी, गुलबर्गा
वर्तमान में हम जहाँ रह रहे है, वह भरतक्षेत्र के आर्यखंड का एक छोटा-सा हिस्सा है। हमारे यहाँ एक सूत्र आता है
भरतैरावतयोर्वृद्धिह्रासौ षट्समयाभ्यामुत्सर्पिण्यवसर्पिणीभ्याम् (तत्वार्थ सूत्र, अध्याय 3 सूत्र 27)
भरत और ऐरावत क्षेत्र के आर्यखंडों में कालचक्र के प्रभाव से वृद्धि और ह्रास होता है। तो ये भरत और ऐरावत क्षेत्र के आर्यखंड की जो धरती है, यह अशाश्वत धरती है। ऐसा वर्णन मिलता है कि जब भोग भूमि से कर्म भूमि की ओर परिवर्तन हुआ, यह धरती, भरत क्षेत्र का आर्यखंड बीच से 1 योजन ऊपर उठ गया। तो धरती के उठने का विधान मिलता है, ऐसा तो नहीं कि तश्तरी की तरह उठा होगा। वो एक बहुत बड़ा ग्लोबल चेंज हुआ होगा। तो उससे बहुत सम्भावना है कि हमारी यह धरती का एक छोटा-सा अंश ऊपर उठा, उसने ग्लोबल शेप ले लिया होगा। और इसमें अनेक क्षुद्र पर्वत और उपसमुद्र प्रकट हो गए। इसके कारण इसका शेष जंबूद्वीप से सम्पर्क टूट गया।
मैं कहूँगा कि वर्तमान का जो विदित विश्व है, मेरी दृष्टि में भरतक्षेत्र के आर्य खंड का ही एक अंश है। म्लेच्छ खंड नहीं क्योंकि हर तरफ किसी न किसी रूप में जैन धर्म अनुयायियों का आवागमन है। म्लेच्छ खंड में ऐसा नहीं होता। तो यह आर्य खंडों का ही एक रूप होगा। मैं अवधारणा पूर्वक इसे इसलिए नहीं कह सकता क्योंकि हमारा आगम आज हमारे पास उपलब्ध नहीं है। हम जिस पृथ्वी में रहते हैं, वह अशाश्वत पृथ्वी है। और जिस पृथ्वी का हमारे शास्त्रों में वर्णन है, वह शाश्वत भूगोल है। तो वह वर्णन उपलब्ध नहीं होता।
बरमूडा ट्रायंगल के बारे में मैंने भी पढ़ा, वह आज भी एक रहस्य बना हुआ है। मिस्ट्री ऑफ़ बरमूडा के नाम पर मैंने कुछ पढ़ा है। वह क्या है, क्या हो सकता है, इसके बारे में गहन सोच की सम्भावना है। अभी तक जिन लोगों ने भी उसमें रिसर्च करने की कोशिश की, वो भी उपलब्ध नहीं हो सके। यह अपने आप में एक बहुत बड़ा रहस्य हो सकता है। हमारे विद्याधरों की श्रेणियाँ हो सकती हैं। विदेह क्षेत्र तो बहुत दूर है। कुछ भी हो सकता है। यह जितने प्लैनेट्स हैं वे भी प्रकृति में होने वाले परिवर्तन का परिणाम हो सकता है। जो भी हो, आज हमारे पास शास्त्र उपलब्ध नहीं हैं। हमारे पास सूचनाएँ सीमित हैं, इसलिए हम विज्ञान की मान्यता का निषेध नहीं कर सकते। मैं तो आपको एक सलाह दूँगा विदेह क्षेत्र कहीं भी हो, हमें क्या फर्क पड़ता है। हमें विदेह नहीं जाना है। हमें विदेह बनना है और वह भरत क्षेत्र से भी बना जा सकता है, इसलिए विदेह बनने का प्रयास कीजिए।
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