रक्तदान का हमारे धर्म में क्या महत्त्व है, क्या रक्तदान दान है?
रक्तदान के महत्त्व की बात बाद में; हम दान करते हैं स्व-पर के उपकार के लिये। यदि किसी को रक्त दिया जाता है, तो सामने वाले को उसका लाभ दिखता है या नहीं दिखता? किसी के प्राणों की रक्षा होती है या हत्या? रक्षा होती है। ब्लड सेल (blood cell) सुरक्षित होते हैं तभी होता है। तो रक्तदान में किसी भी प्रकार की हिंसा नहीं है। इसका निषेध करना जैन धर्म के मर्म को नहीं समझना है। जैसे हमारे शरीर के एक नस से दूसरे नस में हमारे रक्त का प्रवाह है वैसे ही शरीर के बाहर दूसरे के शरीर में उस रक्त का प्रवाह होता है, तो इसे निषेध करना उचित नहीं है। भले ही लोग इसका विधान न करें पर यदि इसका निषेध करेंगे तो जैन धर्म सबसे ज़्यादा अव्यावहारिक धर्म हो जाएगा। हमें देश काल की परिस्थितियों के अनुरूप चलना चाहिए। आज स्पष्ट तौर पर यह देखने में आ रहा है कि लोगों को रक्त देने से उनका जीवन बच रहा है, तो ऐसे पुण्यकारी क्रियायों को जिससे किसी के प्राणों की रक्षा हो, अधर्म बताना जैन धर्म के स्वरूप की अनभिज्ञता का उदाहरण है इसलिये ऐसा कभी नहीं करना चाहिये।
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