क्या अंगदान धर्मानुसार उचित है?
हर बात को धर्म के साथ तोलना ठीक नहीं है, लोक-व्यवहार में बहुत सारी बातें उचित होती हैं। जो चीजें लोक-व्यवहार में उचित हैं, उन सब चीजों के लिए हम हर बात में धर्म की मुहर लगाएँ, यह बात उचित नहीं।
हम देखते हैं blood donation (रक्तदान) से practically (व्यवहारतः) आदमी की life saving (जीवन बचाव) होती है। एक आदमी को अगर कोई अपने शरीर का अंग देता है, तो उसका जीवन सुरक्षित बचता है। हमारे शास्त्रों में यद्किंचित निषिद्ध किया गया है भी तो उस जमाने की बात है जिस समय में अंग छेदन-विच्छेदन की सही – सही प्रक्रिया नहीं थी और उनके preservation (संरक्षण) की व्यवस्था नहीं थी। आज इनके छेदन-विच्छेदन और संरक्षण की पूर्ण व्यवस्था है, ब्लड टेस्ट किया जाता है, ग्रुप (रक्त) मिलाया जाता है और तब जाकर के ट्रांसफर किया जाता है। रक्त को भी लंबे समय तक ब्लड बैंक में preserve करके रखा जा सकता है। इसी तरह अंग, हर किसी के अंग को हर किसी के शरीर में नहीं लगाया जाता उसको उच्च तकनीक के द्वारा लगाया जाता है, जब वह मैच करता है।
तो इसमें मेरे विचार से किसी भी प्रकार की हिंसा की कोई सम्भावना नहीं है। इसलिए अब हम धर्म की दृष्टि से इन की व्याख्या, विवेचना करें या गौण करके इसकी व्यावहारिकता को देखें? उपयोगिता को देखते हुए जहाँ जैसी आवश्यकता हो वैसा कार्य करना चाहिए।
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