मन्दिरों में आधुनिक सुविधाओं के उपकरणों में वृद्धि कितनी उचित है?

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शंका

वर्तमान जीवन शैली को देखते हुए यह दिखाई दे रहा है कि मन्दिरों में आधुनिक उपकरणों की वृद्धि हो रही है, विस्तार हो रहा है। इनका विस्तार होना कहाँ तक उचित है और जो मन्दिर में निराकुलता हमें मिलना चाहिए, उस पर इनका क्या प्रभाव पड़ता है?

समाधान

मुझे लगता है कि आधुनिक उपकरणों से आपका तात्पर्य आधुनिक सुविधाओं से है, थोड़ा खोल दीजिए। यह जो सुविधाएँ हैं, एयर कंडीशनर से लग रहे हैं, पंखे लगते हैं, पंछी तो बहुत पहले लग गए थे, आजकल ऐ.सी. का कांसेप्ट आ गया है। एक और अनिवार्य उपकरण जैसा बन गया, स्टूल या कुर्सी। इस के लिए क्या करना चाहिए, देखें, जहाँ तक मेरी धारणा है एयर कंडीशन मन्दिर में नहीं लगाना चाहिए। एयर कंडीशन लगाने से वहाँ की पॉजिटिव एनर्जी खत्म होती है।एक काम कीजिये, जिस कमरे में आप ऐ.सी. रखते हैं, उस कमरे में आप खुले में एक कटोरे में पानी रख दीजिए, और उसके बाद देखिए उसका क्या हाल होता है? रात भर आप उस पानी को खुला रखिए और सवेरे उसके पानी को देखिए। आपको पता लगेगा पूरा बर्तन खाली हो गया। ऐ.सी. खींच लेती है, हमारे अन्दर के पानी को भी खींच कर सोख लेती है। हमारे अन्दर की जो क्षमता है, उसको नष्ट करती है। 

तो क्या करें, इतनी गरमी पड़ती है, उमस होती है, क्या करें? मन्दिरों का निर्माण इस प्रकार से करें ताकि वह वातावरण के अनुरूप हो सके। भले ही थोड़ा खर्च लगे, किन्तु ऐसे उपकरणों को मन्दिरों में तो कम से कम न लगाएँ। यह चीजें बड़ी नुकसानदेह हैं, इनसे बचना चाहिए। 

मन्दिर का निर्माण इस तरीके से करना चाहिए ताकि लोगों का पूजा-पाठ करने में मन भी लगे और मौसम की मार से भी बच सकें। टी वी तो मन्दिर में नहीं होना चाहिए और गीज़र-यह घोर हिंसा का कारण है; इस का प्रयोग नहीं होना चाहिए। बल्कि इसकी जगह आजकल सोलर सिस्टम से भी बहुत सारी सुविधाएँ आ गई है जिस में पानी छानने की प्रक्रिया ठीक नीति से हो, वैसा ही काम होना चाहिए। जीव हिंसा करके यदि आप मन्दिर में कोई कार्य करते हैं तो बहुत गलत कार्य हैं। गीजर का जहाँ तक सवाल है, गीजर के पानी से नहाना यानी कीड़ों के उबाल से नहाना, कीड़ों के उबाल से आप नहा रहे हैं और भगवान का अभिषेक कर रहे हैं, बताइए आप कहाँ शुद्ध हैं। कीड़ों के उबाल से यानी आप अपने घर के ओवरहेड टैंक में झांक कर देखें जिससे पानी गीजर में आ रहा है, ओवरहेड टैंक में कितने कीड़े बिलबिलाते मिलते हैं। वह पानी गीजर में आ रहा है, तो कीड़े उबलेंगे कि नहीं। थोड़ी सी सोच की बात, काम से कम नल से पानी निकालो, उसको छान लो और छान कर के उसको अपने ढंग से आप को गरम करना है, तो दूसरे साधन से गरम कर लो। काम हो सकता है इसकी जगह सोलर हीटर है, तो उसमें पानी अपने आप गरम हो जाता है, तो उसमें ऐसा पाया जाता कि कीड़े नहीं होते, पानी गरम रहने के कारण। उसको भी देखा जा सकता है, एक जीरो बैक्टीरिया का सिस्टम होता है, वह लगा देने से कोई भी कीड़े सप्लाई लाइन में नहीं आते। 

तो कुल मिलाकर के आधुनिक सुख सुविधा का उपयोग तब तक ही करें जब तक हिंसा से बचा जा सके। यदि हिंसा बढ़ती है, तो सुख सुविधाओं का प्रयोग करना उचित नहीं है। कुर्सी, टेबल, स्टूल आदि का प्रयोग आज समय की आवश्यकता हो गई है, इसका मैं निषेध नहीं करता, क्योंकि जो घुटनों का ऑपरेशन करा चुके हैं उनके लिए कोई विकल्प नहीं है, पर मैं चाहता हूँ कि जवानी से ही लोग अपने शरीर का ऐसा अभ्यास रखें कि आखिरी तक जवान बने रहे कभी घुटने मोड़ने में समस्या न आए। लाइफ़स्टाइल बदलें! यदि करना ही है, तो कुर्सियाँ न लगाएँ, टिक कर न बैठें, स्टूल रखें! यह सबसे उत्तम चीज है और वह स्टूल पर बैठ कर के रीढ़ को सीधी करते हुए पूजा-अर्चना करें, ज्यादा अच्छा है।

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