शंका
पूर्व आचार्यों द्वारा रचित जो संस्कृत की पूजाएँ होती हैं और आजकल के जो नए कविवर व माताजी जो हिन्दी की पूजाएँ बनाते हैं क्या उनका भी महत्त्व समान होता है?
समाधान
अगर कोई स्तोत्र है, तो उसे उसके मूल रूप में पढ़ें। स्तोत्र, जैसे भक्तामर स्तोत्र, आदि उसके साथ लोगों की आस्था इस तरह से अविरूद्ध हो गई कि वो सामान्य स्तोत्र न होकर अपने आप में मन्त्र बन गया और मन्त्र का कोई अर्थ नहीं होता। उसका phonetic प्रभाव होता है, ध्वनि वैज्ञानिक प्रभाव होता है, उसका हमारे जीवन में बहुत असर होता है। इसलिए यदि आप कोई मन्त्र पढ़ते हैं स्तोत्र पढ़ते हैं तो उसको मूल में पढ़ने की कोशिश करें और यदि पूजाएँ हैं तो जिसमें आपका भाव लगे, वो करें।
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