अन्याय से कमाया पैसा धर्म में उपयोग करना उचित?

150 150 admin
शंका

अन्याय से जो धन कमाया जाता है वह पुण्य के प्रताप से आता है या पाप के और उस धन को अगर शुभ कार्य में हम लगाते हैं तो पुण्य बन्ध होता है या पापबंध, अगर पुण्य बन्ध होता है, तो अन्याय से कमाए हुए धन को बढ़ोत्तरी मिलेगी क्या, कृपया समझाइए?

समाधान

अन्याय हो या न्याय, पैसा कमाने के लिए व्यक्ति के अन्दर कुशलता होनी चाहिए, ट्रैक्ट होना चाहिए, गुडविल होना चाहिए, लिंक होनी चाहिए, सारी चीजें हो। जब यह सारी चीजें जुड़ेगी तब व्यक्ति पैसा कमा सकता है, ऐसे बैठे-बैठे कोई पैसा नहीं कमा सकता। यह सारी जो फैसिलिटी है जिसे हम शास्त्रीय शब्दों में कहें तो कह सकते है शुभ संयोग, यह पुण्य के उदय से होते हैं। पुण्य के उदय में प्राप्त शुभ संयोगों का प्रयोग लोग अपने-अपने तरीके से करते हैं। जिनकी बुद्धि निर्मल होती है वह सब संयोगों का सदुपयोग करते हैं, जिनकी बुद्धि विकृत होती है वह सब संयोगों का दुरुपयोग करते हैं। जो भव्य सम्यक् दृष्टि जीव होता है वह अपने जीवन में उपलब्ध शुभ संयोगो का सात्विकता के क्षेत्र में प्रयोग करता है, गलत दिशा में नहीं लगाता, वह न्याय नीति का आश्रय लेता है लेकिन उसकी भवितव्यता खराब होती है। वे अन्याय-अनीति पर उतारू होते हैं, अनाचार करते हैं, भ्रष्टाचार करते हैं, आतंक फैलाते हैं और जब तक उनका पुण्य प्रबल होता है वो कुछ हद तक उसमें सक्सेस भी होते हैं लेकिन वे पुण्य के उदय में पाप करके ही पैसा कमाते हैं। अन्याय अपने आप में पाप हैं, पाप नहीं महापाप है इसलिए महा पाप करके यदि कोई व्यक्ति दान करता है, तो आपने पूछा करना चाहिए कि नहीं करना चाहिए, पहली बात तो उसके द्वारा किया जाने वाला गलत कार्य सर्वथा पाप है, त्याज्य है, करना ही नहीं चाहिए। अब अन्याय करके वह यदि दान दे रहा है, तो उसे स्वीकारना चाहिए या नहीं, शायद आप यह भी पूछना चाहती हैं। मेरी राय में ऐसे व्यक्तियों के धन को स्वीकारने से पहले उसे सुधारने की भी कोशिश करनी चाहिए। एक स्थान पर मैं था, बोलियाँ लग रही थी, भगवान महावीर की जयंती के दिन, एक व्यक्ति ने बोली ली, उसकी बोली खुली, मालूम पड़ा यह पेस्टिसाइड का काम करता है, बोली उसके नाम पर खुली, मैंने कहा जिस की पेस्टिसाइड की फैक्ट्री है, मैं उसके घर आहार ही नहीं लेता और यह बोली, वह भी भगवान का अभिषेक, जन्म कल्याणक का, कैसे इसके हाथों, अब मामला सार्वजनिक क्या करें? बड़ा श्रेष्ठी मामला था, मैंने उस व्यक्ति को मंच पर बुलाया और कहा आज तुम्हारा अहो भाग्य है, तुम्हारे इतने शुभ भाव हुए, तुमने आज बोली लेने का सौभाग्य प्राप्त किया। कितना बड़ा सौभाग्य, भगवान महावीर की जयंती पर तुम यह बोली लगा रहे हो और हजारों लोगों के बीच यह सुअवसर तुम्हें प्राप्त हुआ, महाभाग्य है, मैं चाहता हूँ कि तुम्हारा सारा जीवन भगवान महावीर की शरण में आया, अब तुम अपने जीवन का उद्धार करो। खुश हुआ, हमने कहा भैया एक बात अच्छी नहीं लग रही, बोले क्या? ये पेस्टीसाइड की फैक्ट्री बहुत खटक रही है बताओ उस पेस्टीसाइड के पैसे से भगवान का अभिषेक करना ठीक है? एकदम चरण पकड़ लिया। तत्क्षण चरण पद लिया, इसका उपाय? क्या तुम इसको बंद कर सकते हो? बोले कुछ समय चाहिए। अब कितना समय? उसने कहा बरस। हमने कहा बरस, बरस में तुम इसको बंद करोगे। घोषणा हो गई साल के बाद में बाईंडअप कर देगा। उसके उपरान्त उस दिन की सारी बोलियाँ उसने ली। अभिषेक किया फिर उसके हृदय में पश्चाताप का भाव आया। उसने एकड़ जमीन और ₹८००००० वहाँ की गौशाला के लिए दिया। मैंने जो पाप किया मैं उसका प्रक्षालन करूँगा। फिर थोड़े ही दिन में, साल की तो बात थी लगभग डेढ़ साल की अवधि में उसने अपनी फैक्ट्री को पेस्टिसाइड की जगह फर्टिलाइजर की बना लिया तो जीवन में ऐसा भी परिवर्तन होता है। मध्य प्रदेश के सागर की घटना है। अगर किसी की कमाई के स्रोत अच्छे नहीं है, तो उसके प्रति अछूतपन का भाव नहीं रखना चाहिए, प्रेम से उसे सुधारना चाहिए और उसके जीवन में परिवर्तन करने की बात सोचनी चाहिए। तुम अन्यायी हो, अनाचारी हो, तुम हमारे पास नहीं आ सकते, यह कहना भी ठीक नहीं, उसको ठुकराओ मत धर्म सिखाओ, गले लगाओ आगे बढ़ाओ, ये हमारा धर्म है। हम ये जो ठुकराने की प्रवृत्ति अपनाते हैं यह भी गलत है। आज के समय में हर व्यक्ति के जीवन के साथ बहुत सारी विसंगतियाँ होती है। मैं तो देखता हूँ मेरे सम्पर्क में से बहुत से लोग हैं जिनके जीवन में आमूलचूल परिवर्तन आया है। सम्पर्क में आने के बाद जब उन्हें प्रेम से धर्म का मर्म समझाया गया, लोगों ने अपने जीवन में बदलाव किया।

Share

Leave a Reply