एक जीव-द्रव्य की एक असम्यक पर्याय को देखकर उसी जीव को यदि हम हमेशा-हमेशा के लिए गलत मानते हैं, तो क्या यह मिथ्यातव है? और यदि यह मिथ्यातव है, तो एक जीव-द्रव्य की एक असम्यक पर्याय को देखकर उस जाति के सारे जीवों को वैसा ही पापी या गलत मानना, क्या यह महा मिथ्यातव है?
किसी भी जीव की, किसी भी एक परिणिति विशेष को देखकर उसे उसी रूप में मानना एक प्रकार का अज्ञान है। मैं मिथ्यातव तो नहीं कह सकता, पर एक प्रकार का पूर्वाग्रह है, किसी व्यक्ति के द्वारा कोई गलत प्रवृत्ति हो गई एक बार फिर उसे हमेशा के लिए अपराधी की निगाह से देखना हमारा धर्म नहीं कहता है। हमारा धर्म कहता है कि हर सन्त का भी एक अतीत होता है और हर एक अपराधी का भी एक भविष्य होता है। आज जो सन्त है वह कभी अतीत में अपराधी रहे होंगे और आज जो अपराधी हैं भविष्य में कभी सन्त भी बन सकते हैं, हमें इस बात को देखना चाहिए।
रहा सवाल की जिनकी ऐसी आग्रही-वृत्ति है क्या उसे हम मिथ्यातव कहेंगे? मैं इसे मिथ्यात्व तो नहीं कहूंगा, यह पूर्वाग्रह है और पूर्वाग्रह एक प्रकार की कषाय प्रेरित परिणिति है। यह कषाय का अनुबंध है, जिस व्यक्ति के प्रति हमारे मन में कषाय की गाँठ बनी रहती है, उसमें ढेर सारी अच्छाई होने के बाद भी हमें बुराई दिखती है। यह व्यक्तिगत है, वस्तु के स्वरूप को अन्यथा मानना मिथ्यातव है। किसी व्यक्ति के विषय में एकांगी धारणा बनाना कषाय की परिणति है।
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