मैं एक वर्किंग लेडी हूँ। मैं पूरे समय सलवार सूट पहनती हूँ, पर जब मैं मन्दिर सूट पहनकर जाती थी तो समाज के लोग objection (आपत्ति) करते थे। मैं समय के अभाव के कारण साड़ी नहीं पहन पाती हूँ, इस समस्या के कारण से मैं मन्दिर भी नहीं जा पा रही हूँ, कृपया आप ही मार्गदर्शन दें?
सलवार सूट पहनने वाले को मन्दिर में न जाने देना, यह बात तो मेरे गले नहीं उतर रही है। वह एक परिधान है। सिर ढक कर के मन्दिर जाओ, अपनी मर्यादाओं को बचाकर के मन्दिर जाओ। बल्कि मेरा कहना है कि सलवार सूट में पूरा शरीर ढका होता है, कदाचित् साड़ी में फिर भी कोई भाग अनावृत रह जाए, सूट में अनावृत नहीं होता। इसमें कुछ भी गलत बात नहीं है। ये परिधान है और यह हमारा भारतीय परिधान है।
लेकिन एक बात बोलता हूँ, मुझसे एक लड़की मिली-अनु जैन। अमेरिका में रहती है, वो उस समय पॉलिटिकल साइंस में वहाँ से एम ए (M.A) कर रही थी। बहुत प्रतिभा संपन्न लड़की थी। मैंने उस लड़की से ऐसे ही एक दिन पूछा कि ‘वहाँ आप कैसा महसूस करती हो?’ बोली ‘महाराज! वहाँ पर हम लोग विशुद्ध भारतीय हो गये हैं।’ हमने पूछा ‘क्यों?’ बोली ‘महाराज जी! वहाँ हमें भारतीय होने का सही एहसास हुआ है कि भारतीय संस्कृति की क्या महत्ता है। महाराज जी! आज भी बड़ों को आदर देना, उनके पाँव छूना, उन लोगों के संस्कार में है। हम भले १५ दिन या एक माह में मन्दिर जायेंगे, जब भी मन्दिर जायेंगे साड़ी पहनकर ही जायेंगे, सिर पर पल्ला रखकर के ही जायेंगे क्योंकि उसमें हम लोगों को अपनी भारतीयता का अहसास होता है।’
पर यदि किसी की ऐसी स्थिति है, सूट भी पहनते हैं तो ऐसा नहीं है कि सूट वर्जित कर दिया जाए। सिर ढक कर के अपने अंगों को आच्छादित करके इस तरह के वस्त्र पहनने चाहिए जिससे आपके अंगोपांग दिखे नहीं। बस इतना ध्यान में रखें तो कोई भी वस्त्र पहनने का निषेध नहीं है।
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