मुनि दीक्षा लेने पर क्या विवाह के समय लिए गए नियमों को तोड़ने का पाप नहीं लगता?
बहुत सुंदर प्रश्न किया है आपने! वे 7 नियम संसार के नियम हैं, संसार के नियमों को भी तोड़ना नहीं है किंतु उन नियमों से ऊपर अवश्य उठा जा सकता है।
जैसे किसी व्यक्ति ने बैंक में FD कराई, पाँच साल के लिए FD थी। यदि वह व्यक्ति उसे 5 साल की अवधि के पहले तोड़ेगा तो उसे उसका ब्याज अवश्य काम मिलेगा। कुछ पेनल्टी के रूप में कटेगा। अब 5 साल में उठाएगा तो ज्यों का त्यों ब्याज मिलेगा, ठीक है! लेकिन वही पाँच साल की FD थी उसको बढ़ाकर पच्चीस साल की कर दी, तो ब्याज बढ़ेगा कि घटेगा ब्याज? बढ़ेगा ना! इसी तरह घर में रहते हुए पति पत्नी ने सात फेरे का नियम लिये और यह कहा कि हम जन्म भर एक दूसरे का साथ निभाएंगे और दोनों एक दूसरे से तलाक ले लें तो यह पाप है। किंतु बैराग को अंगीकार करने के बाद पति और पत्नी दोनों में से कोई एक साधु बन जाए तो यह पुण्य है। क्यों ? अगर पत्नी के रहते पति मुनि बन जाता है तो पत्नी आख़िरी तक सुहागन बनी रहती है, उसके माथे का सिंदूर कभी नहीं मिटता, सदा सुहागिन बनी रहती है।
यह UPGRADATION हुआ, उसने अपने पाँच साल की FD को PERMANENT FD बना ली। इसमें ऐसे पाप नहीं होता। ऊपर जाना अच्छा है; जैसे किसी व्यक्ति का उपवास का नियम हो और वह एकआसन कर ले, तो पाप है; लेकिन किसी ने एकआसन का नियम लिया और उपवास कर लिया तो पुण्य है! जो लोग 7 नियम(फेरे) लेने के बाद मुनि बनते हैं, वे एकासन का नियम लेकर उपवास करने का काम करते हैं। इसलिए दुनिया उनकी पूजा करती है।
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