सामाजिक जीवन में रहते हुए कई बार ऐसा होता है कि मन्दिरों के जो श्रेष्ठि आते हैं वह कहते हैं कि ‘मन्दिरों के लिए हमें पैसा उधार चाहिए’ तो क्या उनको पैसा देना उचित है या नहीं?
मन्दिरों के काम चलाने लिए अगर कोई रुपया लेता है तो दे दीजिए पर एक मानसिकता से कि ‘हम मन्दिर में दे रहे हैं; जैसे- किसी व्यक्ति ने मन्दिर में कोई मैटेरियल सप्लाई किया और कुछ दिन बाद हमारे पास पेमेंट आ जाएगा’ इसी प्रकार से आप रुपया दे दीजिए या कुछ विशेष प्रकार के मेटेरियल उन तक पहुँचा दीजिए। और इस भाव से कि हम उसके लिए तकादा नहीं करेंगे, मन्दिर में रुपया आ जाएगा और हम अपना रुपया ले लेंगे। यदि मेरी स्थिति अनुकूल रहेगी तो वह हम भी दे देंगे और उदारता पूर्वक आप दें तो कोई दोष नहीं क्योंकि इसके बिना मन्दिरों का काम रुक जाता है।
सब जगह के जो अच्छे पदाधिकारी होते हैं, सक्षम होते हैं, समर्थ होते हैं वह रुपया दे रहे हैं और ले नहीं रहे। मन्दिर के द्रव्य से निजी लाभ न उठाएँ और जहाँ तक बने मन्दिर और जिस सामाजिक संस्था से आप जुड़े हैं, उसके हित में अधिक से अधिक कार्य करें।
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