शहरों में दूर-दूर स्थित कालोनियों में मन्दिर न होने की वजह से दर्शन हेतु ४-८ किलोमीटर तक जाना होता है, जो प्रतिदिन सम्भव नहीं हो पाता है। क्या घर में विराजित फोटो से दर्शन लाभ मिल सकता है? इन परिस्थितियों में हमें क्या करना चाहिए?
घर में फोटो की पूजा अर्चा करना उचित नहीं है क्योंकि हमारे यहाँ बिम्ब पूजनीय हैं; तस्वीर नहीं। घर में फोटो आदि की पूजा अर्चा से कई बार गड़बड़ियाँ भी हो जाती हैं क्योंकि घर में उतनी शुद्धता भी नहीं रख पाते और मामला गड़बड़ हो जाता है।
शहरों में विस्तार तो हो ही रहा है, तो सबसे अच्छा कार्य तो ये होना चाहिए कि कुछ समर्थ आदमियों को आगे होते हुए शहरों के विस्तार के साथ समाज के विस्तार को देखते हुए ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि जहाँ मन्दिर बने वहाँ समाज बस जाये और जहाँ समाज बसे वहाँ मन्दिर हो जाये। लोग उसी कॉलोनी में मकान या फ्लैट लें जहाँ आसपास मन्दिर हो, पहले मन्दिर को देखें। मैं १५ साल पहले भोपाल में था तब मैंने देखा कि भोपाल के प्रायः हर कॉलोनी में मन्दिर था और जहाँ कॉलोनी बनती थी तो मन्दिर साथ-साथ बन जाता था। अब भी थोड़ा विस्तार हो गया होगा, १५ सालों से ज्यादा हो गया। मैं भोपाल की ही नहीं भोपाल जैसे सभी शहरों की बात कर रहा हूँ। आप अपने घर का चयन करते समय इस बात की सावधानी रखें और यदि ऐसी व्यवस्था नहीं है, तो दो-चार लोग मिलकर गृह चैत्यालय बनवा लें। गृह चैत्यालय में आप अपनी पूजा अर्चा करें तो आपका काम हो जायेगा। मन्दिर, दर्शन व पूजन तो होना ही चाहिए अन्यथा बच्चों के संस्कार नहीं बनते हैं।
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