लॉकडाउन में मन्दिर जाना पुण्य है या पाप?
कुछ संदेश आज मैं जरूर देना चाहता हूँ। वर्तमान में लॉकडाउन का दौर चल रहा है। पूरा विश्व संकट के दौर से गुजर रहा है। सभी लोग इस संकट को दूर करने के लिए जी जान से लगे हुए हैं। शासन और प्रशासन भी इसमें रात दिन एक कर रहे हैं। अभी भी कुछ लोग गलतियाँ कर रहे हैं, आप गलतियों से बचिए।
लोगों का कहना है कि मन्दिर तो फिर भी बंद हो गए लेकिन महिलाएँ मन्दिर बंद होने के बाद भी भीड़ लगा रहीं हैं, ये एक बड़ी समस्या बन रही है। आप लोगों के कहने के बाद भी लोग नहीं सुन रहे हैं। इस बात को ले कर पूरा प्रशासन बहुत चिंतित है। प्रशासन को कार्यवाही भी करनी पड़ सकती है और कर भी रहे हैं। मैं आप सबसे कहना चाहता हूँ, अपने आप पर संयम रखिये। ऐसे दर्शन से आपको कोई बड़ा लाभ नहीं होने वाला है। बल्कि पुण्य की जगह पाप ही कमा लोगे। कुछ लोग सोचते हैं ‘हम दरवाजे से दर्शन कर लें’- ये राग किस बात का? आप संयम रखिए, घर के दरवाजे से नीचे पाँव मत रखिए।
आज जिस तरह की परिस्थितियाँ निर्मित हो गई हैं, हम स्टेज थ्री की ओर मुड़ रहे हैं, अगर सही समय पर ठीक तरीके से नियंत्रण नहीं हुआ और थर्ड स्टेज पर आ गए और कम्युनिटी ट्रांसमिशन में चले गए, तो इसे हरा पाना बहुत कठिन हो जाएगा। इसलिए आप सबकी जवाबदारी होती है कि सोशल डिस्टेंसिंग (social distancing) को पालन करें, मन्दिरों में भीड़ न लगाएँ। ये संदेश मैं पूरे देश के लिए दे रहा हूँ। ५:३० बजे से लोग पहुँच जाते हैं, इसलिए आप सबको चाहिए कि आप स्वयं पर अंकुश रखिये, मन्दिरों में भीड़ मत लगाइए, मत जाइए। ये आपातकालिक धर्म अपने घर से निभा लीजिए, कहीं से भी वायरस का संक्रमण हो सकता है। आप लोग नंगे पाँव मन्दिर आदिक में जाते हैं, एक व्यक्ति के निमित्त से एक दूसरे में संक्रमण होगा, तो कितना बड़ा पाप होगा। इसलिए मेरा आप सबसे कहना है, संयम रखिये। गुरुजनों की बातों को सहज मान लेना चाहिए, जब आपसे कहा गया है कि टेक्नोलॉजी का उपयोग करके आप चैनल से भी तो दर्शन कर सकते हैं। इतना मोह छोड़िये, आपातकालिक धर्म को निभाईए।
आप अपनी दिनचर्या को अपने घर में निभाईए, ऐसा कोई कार्य मत कीजिए जिससे जैन समाज को नीचे देखना पड़े। जैन समाज एक प्रबुद्ध समाज के रूप में जानी जाती है, उसकी अपनी पहचान है और ज्यादातर जैनी भाई इसका पूरी तरह से पालन कर रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि आप कुछ लोगों के निमित्त से प्रशासन कोई कार्यवाही करे और पूरे देश में जैनों का सिर नीचा हो। ये जवाबदेही आपकी है और ये बात में केवल जैनों के लिए नहीं कर रहा हूँ, सभी को कह रहा हूँ। मनुष्य धर्म-भीरु है और उसके मन में धार्मिक क्रियाकलाप करने की रुचि होती है और ऐसे मौके में कुछ ज़्यादा इच्छा होती है। लेकिन ध्यान रखना, मैं अनेक बार ये बात बोल चुका हूँ, धर्म क्रिया में नहीं, भावों और विचारों में है। अपने भावों से, अपने विचारों से जितना बन सके करिए। इस आपातकालिक अवस्था में आपको बहुत संयम रखने का काम है। यही आपके धर्मी होने की पहचान बनेगी। आज से ही सब चीजों को देखिये।
काँच से दर्शन कर रहे हैं, खिड़की से दर्शन कर रहे हैं, लोग डिब्बी ले करके चलते रहते हैं। पुलिस अधिकारी बोले, ‘महाराज सोचते हैं कि अब इनके ऊपर कार्यवाही भी करें तो क्या करें।’ ये समझिए कि आपका लिहाज करके वो लोग नजरअंदाज करते हैं लेकिन अब नजरअंदाज नहीं हो पाएगा। ये एक संदेश हमारे माध्यम से जा रहा है, तो समझ लीजिए कि सबके लिए जा रहा है। आप लोग अपनी आदत को सुधार लीजिए और अपने आप पर नियंत्रण रखिए, ये संकट का दौर है। इस घड़ी में व्यक्तिधर्म से बड़ा राष्ट्रधर्म है। हमें अपने राष्ट्रीय दायित्त्व का निर्वाह करना चाहिए। मानवता की सेवा में बढ़-चढ़ करके हिस्सा लेना चाहिए। मन्दिरों में पूजा मन्दिर का केवल पुजारी कर ले। पूजा होगी, अभिषेक होगा उससे बिना मन्दिर नहीं रह सकता लेकिन जो हमारा विधि-विधान है उसके अनुरूप हो। इस तरह की भीड़-भाड़ करना, दरवाजे पर लोगों का इकट्ठा हो जाना, मन्दिर बंद हो जाने के बाद भी काँच से झांकने-ताकने की बात करना, क्यों? हमारा जीवन है, हम फिर करेंगे दर्शन, फिर करेंगे पूजन। घर बैठे भी आप दर्शन, पूजन, आराधन कर सकते हैं, इसमें कोई सोचने की बात नहीं है।
आप लोगों के लिए ही हमने प्रवचन के कार्यक्रम को स्थगित करके जाप अनुष्ठान प्रारम्भ किया, आप लोगों के ही लिए हमने यहाँ भावना योग शुरू किया, ये आपके लिए ही तो है। तो आप उस चीज को अपनाइये और अपने जीवन को उसी अनुरूप बनाने की कोशिश कीजिए। मुझे पूरा भरोसा है, लोग इस पर ध्यान रखेंगे। ये सन्देश पूरे देश में फैला देना चाहिए। सभी को इससे अवगत कराना चाहिए। आप इसको समझिये, एक दूसरे को बताइए कि ऐसा कार्य नहीं हो। ये ध्यान रखने की बात है, प्रशासन की नजर सब पर है। इसलिए आपको अपने आप पर सुधार करना होगा और इतनी तो जरूरत ही नहीं पड़नी चाहिए। एक सभ्य नागरिक और समझदार नागरिक की ये पहचान होती है कि इशारे में ही सब हो जाए।
कल मुझे एक बहुत अच्छी फोटो दिखाई किसी ने, एक मछुआरा था, वो संदिग्ध हुआ कोविड का। उसने अपने आपको क्वारंटाइन करने के लिए नाव को ही अपना घर बना लिया, एक झोपड़ी बना के रखा, ये है समझदारी की बात। बोला, ‘मैं १४ दिन तक यहीं रहूँगा।’ ये गैर पढ़े-लिखे लोगों का उदाहरण है। तो पढ़े-लिखे लोग कहाँ जा रहे हैं, आप सबको समझना है इस पूरे के पूरे प्रकरण की गम्भीरता को समझ करके चलना है, तभी आप कुछ कर पाएँगे।
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