क्या आज के युग में बेटा-बेटी में फर्क करना सही है?

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शंका

हमारी दो बेटियाँ हैं, सबका कहना है कि एक बेटा भी होना चाहिए। बेटा और बेटी में क्या अन्तर है?

समाधान

ये बहुत गलत सोच है। आज के युग में बेटा और बेटी में फर्क नहीं करना चाहिये। मेरी दृष्टि से बिल्कुल भी उचित नहीं है। 

एक युग था जब कहा जाता था कि जिसका कोई पुत्र नहीं, उसकी कोई गति नहीं। ये भी कहा जाता था कि पुत्र के अभाव में वंश की धारा कैसे चलेगी? कुछ दिन पूर्व एक सज्जन मेरे पास आए। उन्होंने कहा- महाराज! हमारा एक ही बेटी है, बेटा हो जाए ऐसा आशीर्वाद दो। मैंने कहा कि ‘यदि मेरे आशीर्वाद से बेटा हो जाए तो मैं तो दोनों हाथ से दे देता हूँ। मुझे मालूम है कि किसी के आशीर्वाद से किसी को बेटा नहीं होता। तुम अपने आपको भाग्यशाली तो मानो कि तुम्हें कम से कम एक बेटी तो हुई। कई तो ऐसे हैं कि जिनकी कोई सन्तान ही नहीं है।’ वो बोला- ‘नहीं महाराज! हमारा वंश कैसे चलेगा?’ मैंने कहा-“तुम्हारा वंश कैसे चलेगा मुझे मालूम नहीं। संसारी जीवों का जो वंश होता है, वो लंबा नहीं चलता।” मैंने उनसे कहा- “तुम कह रहे हो, हमें कोई सन्तान नहीं तो वंश कैसे चलेगा? भगवान महावीर की कोई सन्तान नहीं थी, उनका वंश कैसे चल गया? युग यगांतरों तक उनका वंश चलेगा। भगवान महावीर की कोई सन्तान नहीं लेकिन उन्होंने अपने आपको धर्म की पथ पर अर्पित कर दिया। युग युगांतरों तक चला और ये वंश भी एक संसार का प्रतीक है। 

ऐसा मोह नहीं करना चाहिए। बेटे और बेटियों के फर्क की मानसिकता ने ही समाज में लड़कियों का लिंगानुपात बिगाड़ दिया है। आज लड़के और लड़कियों के बीच का अनुपात बिगड़ जाने के कारण ही है कि लड़कियों की बहुत कमी होने से लड़के अविवाहित बैठ रहे हैं। अनेक प्रकार से भ्रूण हत्या (abortion) जैसे कुकर्मों के फलस्वरूप समाज में जो विकृति उभरी है, बहुत चिंतनीय है। हमें इसके प्रति सजग और सावधान होना चाहिए। मुझे तो तब आश्चर्य होता है जब एक तरफ लड़के और लड़की की समानता की बात करते हैं, लोग स्त्रियों को पुरूषों के बराबरी से काम करने की प्रेरणा देते हैं; और दूसरी तरफ उसी तबके के लोग अपने घर में बेटा न हो तो रोते हैं। बेटी होने पर मातम मनाते हैं, ये बहुत नकारात्मक सोच है। समाज को ऐसी सोच से बचना और बचाना चाहिए। 

हमारे यहाँ लड़के और लड़की में कोई फर्क नहीं बताया गया। आदि पुराण के कथनानुसार तो लड़की भी अपने पिता की वारिस है; उसी प्रकार से पूरा हक पाती है जैसा एक लड़का पाता है। कानून तो आज व्यवस्था देता है। हमारे शास्त्रों में तो बहुत पुराने समय से ही ये वर्णन है। इसलिए फर्क नहीं करना चाहिए। 

मैं आपसे एक दूसरी बात कहता हूँ, बेटा होगा तो आपको उसकी २५ साल तक गुलामी करनी होगी; और बेटी है, तो जिस दिन उसका विवाह कर दिया, आप आज़ाद हो जाओगी। अपने जीवन को परमार्थ में लगा सकेगी। वैसा सौभाग्य बेटा होने पर नहीं होगा। ये सौभाग्य बेटी के होने पर होगा। आज के युग में जिस बेटे के लिए लोगों का मन रोता है, बड़ा हो जाने के बाद वो बेटा खुद का नहीं हो पाता है। ध्यान रखना! बेटी माँ-बाप के घर से बाहर जाती है, माँ-बाप को थोड़ी सी तकलीफ़ होती है, लेकिन हाँ, माँ-बाप को उस वक्त असह्य वेदना होती है जब बेटा घर से बाहर निकाल देता है। माँ-बाप बेटी को घर से विदा करते हैं और बेटा माँ-बाप को घर से बाहर निकालता है। कितना अन्तर है? 

मैं एक ही बात कहता हूँ बेटे से बेटी अच्छी है आज के युग में। इसलिए ये भेद खत्म करो। माँ-बाप की आँखों में दो ही बार आँसू आते हैं- बेटी घर छोड़े तब और बेटा मुँह मोड़े तब! बेटी की विदाई से माँ-बाप को वो कष्ट नहीं होता जो कष्ट बेटे की बेवफ़ाई से होता है। इसलिए ये विकल्प छोड़ दो, जो तुम्हें सहज रूप से प्राप्त हुआ है, उसे स्वीकार करके अपने मन को आनन्द से भर दो।

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