जब हम अपने बच्चों को कुछ नियम दिलाते हैं- जैसे अष्टमी-चौदस को रात को भोजन न करना – तो कई लोग कहते हैं कि “बच्चे को खाना है तो खाने दो, उसे जबरदस्ती नियम मत दिलाओ।” क्या इस तरह नियम दिलाना सही है? कृपया मार्गदर्शन दें।
बच्चों में नियमों के प्रति रुचि जगाने के लिए इस तरह से नियम देना कतई बुरा नहीं है, नियम देना चाहिए। लेकिन नियम उसके ऊपर थोपो मत, नियम भावना उसके ह्रदय में जगाओ। उनको कहो- “देखो बच्चों! हम लोग 24 घंटे पाप करते रहते हैं। कम से कम 1 दिन तो अपने आपको बचाएँ। छोटे-छोटे नियमों का बड़ा फल मिलता है। आज तुम छोटे-छोटे नियम लोगे तो कल बड़े नियम लेने का सौभाग्य तुम्हें मिल जाएगा। हम लोग जितना बन सके अपने आप को पाप से बचाएँ, जितना हम स्वयं को पापों से बचाएँगे, अपने जीवन का उतना कल्याण कर पाएँगे।” उनको भावनात्मक तरीके से नियम का महत्त्व समझाओगे तो वो बच्चा स्वयं कहेगा- “मम्मी कोई अच्छा नियम हो तो हमें बताना।” इस तरह हमें नियम थोपना नहीं पड़ेगा, वह नियम को स्वीकार करेगा।
प्रायः लोग नियम थोपते हैं। नियम क्यों लेना चाहिए यह आपको पता है, पर बच्चों को पता नहीं। हो सकता है, नियम देने वालों को भी पता न हो, बस कह देते हैं- “नियम लेते हैं इसलिए लेते हैं।” नियम क्यों? यह बात पहले समझना चाहिए। नियमों की जीवन में क्या उपयोगिता है? यह बात समझनी चाहिए। यदि यह बातें प्रारम्भ से बच्चों के दिल-दिमाग में आपने बैठा दीं, तो वो बच्चे कभी भटक नहीं सकते।
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