पहले तो लोग मन्दिर में जाकर भगवान की तस्वीरें खींचते थे। परन्तु महाराज जी अब तो ऐसा समय आ गया है कि लोग मन्दिर में जाके भगवान के साथ सेल्फी खींचने लग गए हैं। क्या ये उचित है?
बहुत अच्छा सवाल किया है। पहले भगवान की तस्वीरें खींचते थे, अब भगवान के साथ सेल्फी खींचने लगें। ये चलन कैसा? मुझे एक बदलाव दिखता है लोगों में, पहले लोग चरित्र से भगवान के साथ रहना पसन्द करते थे; अब केवल चित्र में भगवान के साथ रहना पसन्द करते हैं।
चित्र में रहोगे तो केवल अंकित हो करके रह जाओगे और चरित्र में यदि भगवान के साथ जुड़ोगे तो तुम्हारा जीवन ही पवित्र बन जाएगा। उद्देश्य पवित्रता का होना चाहिए। मेरी राय में भगवान के साथ सेल्फी खींचाना घोर पाप है, नहीं होना चाहिए। भगवान हमारे पूज्य हैं। आप भगवान के साथ अपनी सेल्फी खींच रहे हो उसका मुख्य उद्देश्य क्या है? आपने कभी सोचा? जिस समय भगवान के साथ आप सेल्फी लेंगे उस तरह उस क्षण आपके मनोभाव भगवान के प्रति क्या होते है? ये अज्ञानता है, हम सबके साथ चाहे जैसा व्यवहार कर ले पर अपने आराध्य के प्रति तो थोड़ा ध्यान हमें रखना ही चाहिए। ये बातें मुझे तो कतई उचित नहीं लगती। हम भगवान के साथ चित्रों में अंकित न हो हम अपने आप को भगवान के चरणों में अंकित कर दें, जीवन पवित्र होगा।
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