शंका
किसी प्राणी के वध से उसकी पर्याय बदलती है, क्या ऐसी सोच सही है?
समाधान
ऐसे व्यक्तियों के लिए कबीर ने अपनी एक सूक्ति में कहा कि ‘प्राणियों को यज्ञ की वेदियों पर चढाने से स्वर्ग मिलता है, तो सबसे पहले अपने कुनबे को स्वर्ग भेज दो, उनको क्यों भेज रहे हो?’ अगर किसी प्राणी के घात से उसकी पर्याय सुधरती है, तो घर से शुरुआत कर दो। खुद से ही शुरुआत कर दो, तुम्हारी पर्याय सुधर जाएगी।
यह सब अज्ञान है। मारना, वध घोर पाप है। ऐसे लोगों को क्या कहें? उनका concept (संकल्पना) ही उल्टा है, उनके अन्दर महा मिथ्यात्व का उदय चल रहा है। मेरा उपदेश सुनने वाला तो ऐसा नहीं कह सकता मुझे इतना भरोसा है।
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