क्या नवग्रह विधान मिथ्या है?
नवग्रह विधान के बारे में मैं यह कहता हूँ कि यह भ्रम हटाओ कि ग्रह नक्षत्र हमारा कुछ बिगाड़ते सुधारते हैं। और भगवान की पूजा भी ग्रह शांति के लिए मत करो, पाप शांति के लिए करो। यदि आप ग्रह शांति के लिए अगर भगवान की पूजा कर रहे हो तो आपका उद्देश्य ठीक नहीं हैं। अब शांति के लिए अगर आप भगवान की पूजा करते हो तो उद्देश्य भी ठीक है वह सातिशय पुण्य के बंध का कारण होगा। आचार्य कुंदकुंद ने कहा कि लौकिक उद्देश्य से भर कर यदि जिनेंद्र भगवान की पूजा करते हो तो केवल पुण्य मिलता है और पारमार्थिक उद्देश्य से भर कर के पूजा करते हो तो परम पुण्य मिलता है।
पुण्य और परम पुण्य में क्या अंतर है? पुण्य का मतलब वह पुण्य जो अपने उदय में तुम्हारी बुद्धि को बिगाड़ कर भोगासक्त बनाए और अपने दुर्गति का पात्र बना दे, वह पुण्य है। पुण्य जो अपने उदय में तुम्हारी बुद्धि को बिगाड़ कर भोगासक्त बनाए और दुर्गति का पात्र बनाया वह पुण्य और वह पुण्य जो अपने उदय में तुम्हारी बुद्धि को पवित्र बनाए और नए पुण्य का अर्जन करने का अवसर प्रदान करें वह परम पुण्य। परम पुण्य परंपरा से मुक्ति का कारण है और पुण्य संसार का कारण है। इसलिए ऐसे कार्य करने की जगह जो उत्कृष्ट है केवल उसे ही अपनायें।
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