हम जानते हैं कि हमें जीव हिंसा नहीं करनी चाहिए। परन्तु हम जो अन्न, फल, सब्जियाँ आदि खाते हैं, वो तो हमें पेड़ काटकर ही मिलता है। वह तो हिंसा कहलाती है जिसका बहुत दोष भी मिलता है, तो हम इसको कैसे रोक सकते हैं?
शरीर को चलाने के लिए खाना जरूरी है और बिना खाए तो शरीर नहीं चलेगा नहीं। हम खायेंगे तो ही जिंदा रह पाएँगे। खाना है, तो क्या खाएँ? तो हमारे यहाँ ऐसी व्यवस्था बनाई कि एक तो कोई व्यक्ति किसी प्राणी को जान से मारकर खाता है, तो वो पूरा प्राणी मर जाता है और हमने एक आम के पेड़ से एक आम तोड़ा तो पूरा पेड़ टूटा कि केवल आम टूटा तो हमारा काम चल गया ना। तो जितने भी अनाज होते हैं, वह तो फसल उगती है और पक जाती है, अपने आप सूख जाती है। हम उसको नहीं भी तोड़ेंगे तो वो अपने आप खत्म हो जाएगी। इसलिए अनाज खा सकते हैं और फल-सब्जियाँ वगैरह खाते हैं तो उसमें उनका पेड़ का समूल नाश नहीं होता। वो वनस्पति है, एक इन्द्रिय है। Plant (पौधे) ओर animal (जानवर) में बहुत अन्तर होता है। Plant को तोड़ोगे तो फिर से उग जाएगा पर animal के लिए करोगे तो ऐसा नहीं होगा। पेड़ से पत्ता टूटता है, तो दूसरा पत्ता उग जाता है पर तुम्हारा कान कटकर गिरेगा तो दूसरा कान होगा क्या? इसलिए दोनों को बराबरी से नहीं देखना। जो हमारे लिए सम्भव है, वही हम कर सकते हैं।
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