परिग्रह पुण्य का फल है या पाप का निमित्त?

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शंका

परिग्रह पुण्य का फल है या पाप का निमित्त?

समाधान

परिग्रह पुण्य का फल है या पाप का निमित्त है? पहले तो मैं आपसे ही पूछता हूँ- आप परिग्रह को क्या मानते हो? ‘पुण्य मानते है’ इसीलिए पुण्य से चिपके हो। यही नहीं मानते हैं आप सब लोग मानते हैं, आपकी भंगिमा यह बता रही है कि आपके दिल की बात कही गई है। आप तो पुण्य मानते हो और भगवान ने परिग्रह को क्या कहा? ‘पाप कहा’, अब बताओ- आप परिग्रह को पुण्य मान करके भगवान की वाणी को निभा रहे हो कि झुठला रहे हो, क्या कर रहे हो? भगवान की वाणी को झुठलाने वाले भगवान के भगत कहलाएँगे? क्या कहलाएँगे? वो भक्त नहीं होंगे विभक्त बन जाएँगे।

परिग्रह पाप है, पाप ही नहीं पाप का जन्मदाता भी है। क्यों है? धन-पैसा, उसके निमित्त से सब प्रकार के अनर्थ होते हैं, पाप से परिग्रह उत्पन्न होता है और परिग्रह पाप को जन्म देता है। आप लोग पैसा कमाते हो, कैसे कमाते हो? पुण्य करके? नहीं, पाप करके। तो बताओ जिसका बीज पाप हो उसका फल पुण्य कैसे होगा? विष के पेड़ में अमृत का फल लगा कहीं देखा है क्या? ‘नहीं देखा’ नहीं देखा न तो जिसका बीज पापात्मक है, जो पाप करने से उत्पन्न होता है। आप जब तक षट्काय जीव की विराधना हिंसा नहीं करते, तब तक धन पैसा कमाया नहीं जा सकता। तो परिग्रह पाप का फल है इसलिए पाप है और दूसरा दुनिया में जितने भी पाप होते है परिग्रह से होते है। बिना परिग्रह के भोग-विलास कैसे करोगे, मौज-मस्ती कैसे करोगे। यह जितने भी राग-द्वेष है परिग्रह के कारण ही हैं; झगड़े-झंझट-झमेले परिग्रह के कारण ही हैं। इसलिए परिग्रह पाप से जन्मता है और पाप को ही जन्म देता है।

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