क्या आयु बंध के कारण अकाल मृत्यु संभव है?

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शंका

किसी जन्म में आयु का बन्ध अगर बन्ध जाता है कि हमें अगले भव में कितनी आयु मिलेगी, तो क्या उस भव में अकाल मृत्यु होती है?

समाधान

आगामी आयु का विनाश नहीं होता पर वर्तमान आयु का विनाश हो सकता हैं। दो प्रकार की आयु है-एक भुज्यमान आयु और बद्धमान आयु। भुज्यमान आयु वो आयु है जिसे हम भोग रहे हैं और बद्धमान आयु वह आयु है जिसे हमने अगले जन्म के लिए बाँध रखा है। जो आयु हमने अगले जन्म के लिए बाँध ली है उसमें कोई हेर-फेर नहीं होगा। जो भी हेर-फेर होता है वह हमारी वर्तमान आयु में ही होता है। और वर्तमान आयु में उसकी ही आयु में हेर-फेर होता है जिसने आगामी आयु को नहीं बाँधा। जो आगामी काल की आयु को बाँध लेता है उसका अकाल मरण कभी नहीं होता है। अकाल मरण उसी का होता है जिसने आयु का बन्ध नहीं किया।

इस अकाल मरण को आगम में ‘कदलीघात’ मरण की संज्ञा दी है। कदलीघात मरण का अर्थ ही है कि जैसे केले का पेड़ होता है वह हरा-भरा होता है और एक ही बार फल देता है और फल देने के बाद उसमें दोबारा फल नहीं लगते है; उसकी जगह दूसरा पेड़ उग आता है। किसान नये पेड़ से पर्याप्त रस मिले इस भाव से उस हरे-भरे पेड़ को काट डालता है। इसको बोलते हैं कदलीघात। 

इसी प्रकार जिस का हरा-भरा जीवन असमय में नष्ट हो जाये उस मरण को कदलीघात मरण कहते है या अकाल मरण भी कहते हैं। आगम में इसके पर्याप्त उद्धरण मिलते हैं। 

 आचार्य कुन्दकुन्द ने अकाल मरण के कारणों का निरूपण करते हुए कहा कि, 

विसवेयणरत्तक्खयभयसत्थग्गहणसंकिलेसाणं। 

आहारुस्सासाणं णिरोहणा खिज्जए आऊ।। भाव पाहुड

विष के भक्षण से, तीव्र वेदना से, रक्त के क्षय से, संक्लेश से, तीव्र भय, शस्त्र घात से, आहार एवं श्वासोच्छवास के निरोध से, के कारण से आयु क्षीण हो जाती है। इसी प्रकार अन्य स्थल में उन्होंने लिखा कि, 

“गिर चरण-परन भंगेही, अनेय प्रसंगेहि विवेहही, 

 अपि मिच्छु महा दुखःम पत्तोसि अनंतो धीरो”

पर्वत चढ़ने-उतरने से, गिरने से, अनीति करने से यह जीव अनेकों बार अपमृत्यु का पात्र बना है। इसलिए अकाल मरण है। इसलिए अकाल मरण के निमित्तों से यथा सम्भव बचें।

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