क्या आरक्षण से पद पाने वाले का पुण्य अनारक्षित बेरोजगार से प्रबल है?

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शंका

आज के समय में किसका पुण्य कर्म प्रबल है? एक रिजर्व कोटे का उम्मीदवार जो बिना मेहनत कर सब कुछ पा जाता है; जैसे उच्च शिक्षा, उच्च ओहदा एवं नौकरी। दूसरी तरफ एक जैनी मेधावी विद्वान् जो जी तोड़ मेहनत करने के बाद भी पिछड़ा रह जाता है?

समाधान

इस व्यवस्था को हम पुण्य-पाप से नहीं जोड़ेंगे। यह तो एक शासकीय व्यवस्था है, शासन ने ऐसी व्यवस्था दे दी कि यह रिजर्वेशन के अधिकारी हैं, इन्हें आरक्षण प्राप्त है इसलिए आगे बढ़ गए और एक व्यक्ति है जिसे आरक्षण न मिलने से ऊँचा ओहदा और ऊँची अच्छी नौकरी नहीं मिली तो यह पाप का उदय नहीं है। पुण्य और पाप का सीधा सम्बन्ध बाहर के ओहदे, पदों और नौकरियों से नहीं है। पुण्य और पाप का सीधा सम्बन्ध हमारे गुण, विद्या या हमारे व्यक्तित्त्व के आन्तरिक पक्ष से है। जिस व्यक्ति का पुण्य प्रबल होगा उसके व्यक्तित्त्व में निश्चित तौर पर निखार होगा। जिसका पुण्य क्षीण होगा, उसका व्यक्तित्त्व चाहे कितना भी अच्छा हो, ओहदा कितना भी अच्छा हो, उथला रहेगा। ऐसे लोगों को भी मैं जानता हूँ, जो आज बहुत उच्च पद पर हैं लेकिन उनका आचार-व्यवहार बहुत गड़बड़ है। वह अपने जीवन को ठीक ढंग से चला नहीं पाते, यह उनके पाप का उदय है। मैं उन लोगों से कहना चाहता हूँ जो आज वर्तमान व्यवस्था से प्रभावित होकर अपने मन में हीनता की अनुभूति करते हैं उसे अपने दिमाग से निकालें और आप यह सोचें कि जिसे नौकरी मिली, वह पुण्यशाली नहीं है; पुण्यशाली तो वह है जो लोगों को नौकरी देने में समर्थ है। आप नौकरी देने लायक बनो, अपनी प्रतिभा अपनी लग्न, अपने निष्ठा के बल पर ऐसे आगे बढ़ो कि सरकारी नौकरी के पीछे मोहताज न होना पड़े। व्यक्तित्त्व को इस तरह निखारो कि अनेक लोगों की जीविका का आधार बनो, लोगों को नौकरी दे सको और जहाँ रहो अपने जीवन को आगे बढ़ा सको।

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