आज कोलकाता में जो ब्रिज दुर्घटना हुई इसमें कई लोगों की जानें गईं। हो सकता है उसमें जैनी भी हों तो उन्होंने क्या पाप किया कि उनकी आकस्मिक मौत हो गई?
अभी-अभी मुझे मालूम हुआ कि कलकत्ता में एक ब्रिज गिर गया। महाराज ने बताया, मुझे मालूम नहीं था। उसमें लगभग १५०-२०० लोगों का प्राणांत हो गया। यह सब लोगों के सामूहिक पाप कर्म का उदय था। आपने पूछा है इसमें जैन थे या नहीं थे? मरने वालों की कोई जाति नहीं होती, सभी इंसान थे। यह सबके सामूहिक पाप का उदय था। अब आप सवाल करेंगे- सामूहिक पाप का उदय कैसे है? हम लोग सामूहिक रूप से पुण्य भी करते हैं सामूहिक रूप से पाप भी करते हैं। यहाँ आप सब बैठे हैं, अभी इतने सारे लोग यहाँ घर बैठे कार्यक्रम देख रहे हैं, एक साथ हजारों लोग क्या कर रहे हैं, पुण्य की क्रिया कर रहे हैं, लाखों लोग कर रहे हैं। एक साथ सब सामूहिक रूप से पुण्य का बन्ध कर रहे हैं। ऐसे ही सब बुरे कार्य की अनुमोदना करते हैं तो सामूहिक रूप से पाप का बन्ध करते हैं, अच्छे और बुरे कार्य दोनों चलते हैं।
इसी टीवी से पुण्य का भी बन्ध करते हैं आप लोग; और घर बैठे हिंसा, अश्लीलता और अन्य प्रकार के दृश्यों की अनुमोदना करके आप पाप भी कमाते हैं। इस प्रकार सामूहिक पुण्य और सामूहिक पाप दोनों का बन्ध होता है। जब उनका उदय काल आता है, तो ऐसा निमित्त बनता है कि सारे संयोग मिलते हैं और वह सब कारण सामग्री मिलकर इस तरह की घटनाओं के माध्यम से फल जो भी हो, उनके किसी भी पाप कर्म का उदय हम यह नहीं कह सकते, कौनसा पर्टिकुलर (Particular) पाप था क्योंकि यह किसी दिव्यज्ञानी के ज्ञान का विषय है। पर हमें यह सद्भावना भानी चाहिए कि सबकी आत्माएँ जहाँ भी हो, उन्हें शांति मिले और लोक में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। जिनके भी परिवारों के साथ इस प्रकार का हादसा जुड़ा है उन सबके प्रति मैं अपनी सहानुभूति व पूर्ण संवेदना प्रगट करता हूँ।
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