लोगों की यह मान्यता है कि मन्दिर के शिखर की छाया या परछाई यदि किसी के मकान या प्लॉट पर पड़ती है वह अशुभ होती है, क्या यह वास्तु सम्मत, शास्त्र सम्मत बात है, यदि है, तो इसका क्या उपचार है?
ऐसा लिखा है कि सूर्योदय के एक प्रहर बाद और सूर्यास्त से एक प्रहर पहले तक छाया नहीं पडनी चाहिए तो वह निवास के योग्य नहीं है। मन्दिर से आप जुड़ करके यदि निवास होगा तो अनेक प्रकार की परेशानियाँ होगी। इसके पीछे का विज्ञान है कि गृहवास में अनेक प्रकार के कार्य होते हैं, पाप होता है, अशुद्धियाँ होती है। मन्दिर से सट कर ऐसा करोगे तो वह अशुद्धि होगी। मन्दिर एक पवित्र स्थल है, तो उसकी पवित्रता को कायम रखना चाहिए। दूरी इतनी रखे कि शिखर की छाया जहाँ तक न पड़े, सूर्योदय के एक प्रहर बाद की छाया बड़ी लम्बी होती है इसी तरह सूर्यास्त के आखिरी पहर की छाया भी बहुत लम्बी होती है। इसे ऐसा समझे कि 6:00 बजे से सूर्योदय का काल है, तो 6 से 3 घंटा निकाल दिए अर्थात 9 बजे के बाद और 3:00 बजे के पहले तक कि जितने क्षेत्र में छाया पड़ती है उतने क्षेत्र में व्यक्ति को अपना निवास स्थान नहीं बनाना चाहिए। वास्तु ग्रन्थो में इसका उल्लेख मिलता है मैंने इसके दुष्परिणाम भी देखे हैं। एक परिवार बहुत परेशान रहता था, मन्दिर के पास ही था। मन्दिर के लोग उसकी जगह चाहते भी थे लेकिन वह देना नहीं चाहता था। मन्दिर के लिए बहुत उपयोगी जगह थी, लोग वाजिब कीमत से ज़्यादा भी देने तैयार थे लेकिन वह राजी नहीं था कि मन्दिर पास में है हम क्यों जायें पर उनके यहाँ व्यापार में भी अच्छी प्रगति नहीं थी और घर में कोई न कोई बीमार बना ही रहता था। संयोग से मेरा वहाँ जाना हुआ, जब लोगों ने बोला तो मैंने उनको बुला करके समझाया। हमने कहा देखो मन्दिर जैसे कार्य में तो हमको कभी अन्तराय डालना ही नहीं चाहिए, तुम्हारे घर को बदलने से मन्दिर की रौनक बदलती है, तो समझ लेना तुम्हारे जीवन की भी रौनक निश्चित बदलेगी, इसमें अन्तराय मत डालो। मेरे कहने से सामने वाले के मन को अच्छा लगा उसने स्वीकार लिया। आप सुनकर आश्चर्य करोगे वहाँ से गए, मन्दिर को प्रोपर्टी दी। मन्दिर कमेटी ने उनके लिए पैसा दिया और वे दूसरी जगह जाकर के बसे, आज वह कहते हैं महाराज मै पहले से बहुत अच्छा हूँ, व्यापार भी अच्छा बढा है और स्वास्थ्य लाभ में भी अन्तर दिखा। ये चीजें ध्यान में रखनी चाहिए।
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