क्या मुनि महाराज और आर्यिकाओं के संघ में चैत्यालय रखने का विधान है?
प्रायश्चित सार्वजनिक रूप में नहीं लिया जाता। प्रायश्चित अलग से लिया जाता है।
जहाँ तक मुनि महाराज और आर्यिकाओं के संघ में चैत्यालय रखने की बात है, आगम में ऐसा कोई विधान नहीं है कि मुनियों को, आर्यिकाओं को चैत्यालय रखना पड़े। आचार्य कुन्दकुन्द के अनुसार तो मुनि खुद चलते-फिरते चैत्यालय हैं, प्रतिमा हैं, दर्शन हैं, तीर्थ हैं। जिनके पास पिच्छी और कमंडल है उन्हें अलग से दर्शन रखने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि उन्हें रखने से बहुत सारे झमेले साथ में जुड़ जाते हैं और उसमें आडम्बर जुड़ता है। इसलिए हमारे संघ में किसी भी प्रकार के चैत्यालय का प्रावधान नहीं है। कुछ संघों में ऐसा चलता है और वहाँ पर लोग पूजा-पाठ आदि करते हैं।
चाहे मुनि संघ की जिन प्रतिमा हो या आपके मन्दिर में विराजमान प्रतिमा हो, प्रतिमा तो प्रतिमा है। जब आप यह मानते हैं कि हमारी जिन प्रतिमाओं पर स्त्रियाँ अभिषेक नहीं करतीं, इस विश्वास में जीते हैं, तो आप किसी भी प्रतिमा का अभिषेक नहीं करें क्योंकि वह प्रतिमा भगवान की प्रतिमा हैं। कोई आपसे आग्रह करे भी, तो अत्यन्त विनम्रता से हाथ जोड़ लो कहो- ‘महाराज! आप सही, आपकी बात सही, लेकिन हम जो कर रहे हैं हमें उतना ही करने दें! इसी में हमारा काम हो जाएगा।’ और वही आपके जीवन की सफलता का आधार बनेगा।
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