संयम के उपकरण के रूप में मुनिराज मयूर-पंख पिच्छिका रखते हैं लेकिन कुछ मुनिराजों ने सफ़ेद पिच्छिका रखना शुरू कर दिया है। इसके पीछे धार्मिक औचित्य है या अपनी भावना?
मोरपंख की पिच्छी का विधान शास्त्रों में लिखा है। बीच में ८-१० साल पहले उनके प्रतिबंध के ऊपर कुछ चर्चाएँ आने लगीं, तो साऊथ अफ़्रीका से किसी भक्त ने एक आचार्य को सफ़ेद मोर के पंख ला करके दे दिये, उनकी पिच्छी बनाकर के दे दी। मोर पंख है, तो रखने में कोई हानि नहीं, उससे उनका एक नया विरुद्ध जुड़ गया श्वेतपिच्छाचार्य। श्वेतपिच्छाचार्य एक नया विरुद्ध जुड़ा और उसी के पीछे लोग लग रहे हैं। उसके लिए अफ्रीका से उनको मोर का पंख लाना पड़ता है, सफ़ेद मोर भारत में नहीं मिलता, आस्ट्रेलिया और अफ़्रीका में मिलता है। इतना सब कुछ करने से कोई विशेषता नहीं है, कोई सफ़ेद पिच्छी रखे तो उनके जीवन में ३६ गुण की जगह ४१ गुण हो जायें, ऐसी बात नहीं है। जब तक हमें ये मोरपंख सुलभ हैं, तो सफ़ेद मोर के पंख की पिच्छी रखने की आवश्यकता नहीं हैं, फिर भी रखें उसका निषेध नहीं है।
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