नया मन्दिर बनवाने में ज़्यादा पुण्य है या फिर जीर्णोध्दार कराने में?
जब जैसी आवश्यकता हो वैसा कार्य करें। एक बार साहू अशोक जी गुरुदेव के पास आए और उन्होंने गुरुदेव से कहा कि महराज श्री आजकल लोग नये-नये मन्दिर बनवा रहे हैं जबकि पुराने मन्दिरों का जीर्णोध्दार कराना भी आवश्यक है और उसमें पुण्य भी ज्य़ादा है। गुरुदेव ने कहा, हाँ उसमें पुण्य भी बहुत है। वह बोला महाराज जी आपके नाम से पत्रिका छपवा दूँ, ‘नए की जगह पुराने का जीर्णोध्दार करें।’ गुरुदेव बोले, हाँ करवा दो, पर एक बात का जवाब दो कि अगर आपके कपड़े फ़ट जाएँगे, तो कब तक रफ़ू कराकर पहनोगे। पुराने मन्दिरों का जीर्णोध्दार कराने की परम्परा के साथ कुछ ऐसा भी कर जाओ कि आने वाली पीढ़ियाँ भी कुछ जीर्णोध्दार करा सकें। इसलिये जो जीर्ण है उसका जीर्णोध्दार करो लेकिन नए के निर्माण की प्रक्रिया को मत रोको।
Leave a Reply