हमें और हमारे बच्चों को हमारे संस्कार और धर्म की मर्यादा का पता है। मैंने ऑस्ट्रेलिया में रहते हुए भी कभी वेस्टर्न ड्रेस नहीं पहना, सूट पहनती हूँ फिर भी मेरे ससुरजी कहते हैं ‘साड़ी पहनो।’ मेरी शंका यह है घर में साड़ी पहनूँ और पलट कर जवाब दूँ तो कहाँ की respect रहेगी जबकि मेरी ननद के लिए मेरे ससुरजी को ऐसा घर चाहिए जहाँ उन्हें सब पहनने की आज़ादी हो,तो ऐसी छोटी मानसिकता क्यों?
बात सही है। पहनावा हमारा ऐसा होना चाहिए जिसमें हमारी मर्यादाओं की रक्षा हो। ये हमारे अन्दर से स्वीकृत होना चाहिए, इसमें किसी प्रकार का दबाव नहीं होना चाहिए। यह बहुत अच्छी बात है कि आप आस्ट्रेलिया जैसे देश में रख कर के भी अपने पहनावों के प्रति जागरूक हैं और आप वहाँ की वेस्टर्न स्टाइल की जो शॉर्ट ड्रेसेस हैं, उसको नहीं पहनते, सूट पहनते हैं, बहुत अच्छी बात है। जहाँ तक परिवार के लोगों की बात है यदि वह चाहते हैं कि आप साड़ी पहने तो हमें उनकी इच्छा अनुरूप साड़ी पहनने में भी कोई संकोच नहीं करना चाहिए। साड़ी पहनने के नाम पर अगर आप जवाब दें तो उचित नहीं लेकिन जो नीचे की बात है वो सबके लिए सोचनीय है।
बहू के लिए तो यह कहते हैं और बेटी के लिए दूसरी दृष्टि रखते हैं, यह दोहरी मानसिकता ठीक नहीं। जो लोग ऐसा करेंगे वह अपने घर की बहू का आदर नहीं पा पाएँगे, सम्मान नहीं पा पाएँगे। जो आप चाहते हैं कि मेरी बहू ऐसी हो तो पहले अपनी बेटी को वैसा बनाओ। मैं एक घर की बात आपको बताता हूँ। एक परिवार में बहू आई और उन्होंने बहू को लाने से पहले उन्होंने अपनी बेटी में वह सब चीजें डाल दीं, अब बेटी में आदत डाली, बेटी से काम कराएं, बेटी से घर की सारी व्यवस्थाओं को सुचारू करें, बेटी ने भी अपने पहनावा आदि में, धार्मिक क्रियाओं में भी वैसी निपुणता रखी। लोग लड़के को देखने के लिए आए और पूछा कि आपको कैसी लड़की चाहिए? उन्होंने अपनी बेटी की तरफ दिखा दिया कि हमें अपनी बेटी जैसी बहू चाहिए। अगर ऐसी बहू मिलेगी तो हम स्वीकार लेंगे। ये एक उदाहरण है।
एक दूसरा उदाहरण मैं आपको बताता हूँ। एक जगह एक की सगाई हेतु बातचीत हुई और लड़के वाले लड़की के यहाँ गए। रोका हो गया, अभी सगाई नहीं हुई, बातचीत का दौर चला। आना -जाना हुआ, लड़के के माता-पिता लड़की के घर गए तो देखते क्या हैं, माँ तो खाना बना रही है। बेटी आराम से टीवी देख रही है। मेहमान घर में आए हैं, माँ खाना बना रही है, बेटी टीवी देख रही है। बात को इग्नोर किया, चले आए। दूसरी बार जब गए तो देखा माँ घर का बर्तन मांज रही है, बेटी नेलपेंट लगा रही है। तीसरी बार गए तो देखा कि माँ कपड़ा धो रही थी बेटी अपनी ड्रेसिंग कर रही थी। तीसरी बार जब यह स्थिति देखी तो देखते ही कहा ‘हम यह सम्बन्ध वापस लेते हैं।’ सामने वाले ने पूछा ‘क्यों?’ बोला ‘जो बेटी अपनी माँ को सहयोग नहीं कर सकती वह अपनी सास को क्या सहयोग कर पाएगी। घर में काम करने वाले लोगों का अभाव है, नौकर दाई नहीं है और यह उसके बाद भी ध्यान नहीं रख पा रही है, तो यह लड़की निष्णात नहीं है, हमारे घर के लायक नहीं है।’ आप सबसे कहता हूँ कि आप अपेक्षा रखते हो कि मेरी बहू ऐसे बने तो पहले अपनी बेटी को वैसी बनाकर दिखाओ। उसे रोल मॉडल के रूप में बनाओ। बेटी तो बेटी है, सब चलता है, आजकल का तो जमाना है। मेरी बेटी को जो पसन्द हो पहनना तो थोड़ी फ्रीडम रहना चाहिए तो जैसे तेरी बेटी को भी फ्रीडम रहना चाहिए तो तेरी बहू भी किसी की बेटी है उसको भी फ्रीडम दो। दोहरी मानसिकता कतई उचित नहीं है।
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