जैन धर्म एक है, जिनागम एक है, णमोकार मन्त्र एक है, अरिहंत, सिद्ध, आचार्य भी एक ही मानते हैं तो फिर ये पन्थ क्यों चले? तेरापंथी, दिगम्बर, श्वेताम्बर, गोत्र भी चलती है लेकिन तेरापंथी और बीसपंथी क्या है? समाधान कीजिये?
ये पन्थ किसने बनाया है? भगवान ने नहीं बनाया, भगवान के पथ पर चलने वालो ने बनाया है। पन्थ हमारे और तुम्हारे हैं। पन्थ भगवान ने नहीं बनाये हैं। मैं तो यही कहूँगा कि पथ को देखो पर पन्थ को नहीं। जब पथ देखोगे तो सब सही हो जाएगा। यह सब की अपनी-अपनी आस्था है। पन्थ कैसे बनते हैं? एक परम्परा है जो इस पर विश्वास रखती है कि पंचामृत अभिषेक हो, महिला अभिषेक करें; और एक परम्परा है, जो कहते हैं ‘नहीं! पंचामृत अभिषेक, महिला अभिषेक या फल-फूल भगवान के चरणों में चढ़ाना ठीक नहीं है।’ अपनी तरफ से तर्क भी है, तर्क कई अर्थों में सही है पर उसमें हिंसा दृष्टिगोचर होती है, तो वह उनकी अपनी आस्था है। जिस को जिस पन्थ पर चलना है उसको चलने दो। विचार और विवेक से काम करो। जिसमें अल्पतम हिंसा हो, वैसा काम करो। धर्म के सन्दर्भ में मैं तुमसे कहूँ कि तुम यह सोचो कि ‘सारे पन्थ एक हो जाएँ’ तो यह सम्भव नहीं है। पन्थी एक रहें यह तो सम्भव है। जो जिस पन्थ में चलता है, उसे चलने दो। हमें पन्थ को नहीं देखना, पथ को देखना है। हमारा पथ क्या है? अहिंसा और वीतरागता। धर्म के रूप में उसी बात को स्वीकार करो, जिसमें अहिंसा पलती हो और जिससे वीतरागता की पुष्टि हो। जिसमें हिंसा हो और राग हो उसे धर्म मत मानना।
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