शंका
आरक्षण के कारण आजकल कम नंबर वालों को भी नौकरी आसानी से मिल जाती है। लेकिन हम जैनियों को उनसे ज़्यादा नंबर लाने पर भी नौकरी नहीं मिलती, जिससे आज के युवा के मन में यह पीड़ा उत्पन्न होने लग जाती है कि हमें जैन धर्म किसी पाप के उदय से मिला है? ऐसी मनोवृत्ति से उन्हें कैसे बचाया जाए?
समाधान
जैनियों को और ऐसे लोगों को सोचना चाहिए कि हमने जैन कुल में जन्म लिया है और जैन कुल में जन्म लेना हमारे लिए सार्थक है। यह पाप के उदय से नहीं हुआ, पुण्य के उदय से हुआ है। हमारा पुण्य यह है कि हम नौकरी देने लायक हैं, नौकरी करने लायक नहीं। मेहनत करके नौकरी देने लायक बनो, नौकरी करने वाले नहीं।
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