जीवन के मूल्य की पहचान
एक बार किसी बंदर के हाथ रत्नों की पोटली लग गई। लाल-लाल पोटली को खाने की वस्तु समझकर उसे उठाया और पेड़ पर चढ़ गया। पोटली खोला, एक को मुँह में डाला तो स्वाद नहीं आया, नीचे फेंक दिया। दूसरे को उठाया स्वाद नहीं आया, नीचे फेंक दिया। पूरी पोटली खाली हो गई, बाद में पोटली भी नीचे डाल दिया। रत्नों को यह बात बड़ी अटपटी लगी और रत्नों ने धरती से कहा, हे माते! देख तो यह कैसा नालायक है, दुनिया जिसे अपने सिर पर बिठाती है, माथे के मुकुट में लगाती है, जिसके लिए तरसती है, यह कैसा बेवकूफ है? जिस बेशकीमती, मूल्यवान वस्तु को यूँ फेंक रहा है। धरती ने मुस्कुरा कर के कहा कि इसमें दोष उसका नहीं, दोष उसकी अपात्रता का है। काश! उसे पहचान होती तुम्हारे मूल्य की, तो ऐसा नहीं करता।
सीख
सच्चाई यही है, हमारा जीवन भी किसी मूल्यवान रत्न की पोटली से कम नहीं पर जो इसके मूल्य को समझता है, महत्व को जानता है, वह इसको संभाल कर रखता है इसका समादर करता है। जो इसके मूल्य और महत्व से अनभिज्ञ होते हैं वे सब उस बंदर की तरह अपने जीवन की इन बेशकीमती मूल्यवान सांसो को यूँ ही व्यर्थ कर देते हैं। महत्व जीवन को समझने का है और जीवन को समझ कर के ठीक ढंग से जीने का है।
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