आजकल ज्यादातर देखा जाता है कि उच्च शिक्षित युवा, जो अपने शहर में अपने पिता का व्यवसाय या कारोबार संभालता है, और बाहर 30-50 हजार की नौकरी करने वाले युवा के बीच लड़कियाँ अधिकांशतः उस बाहर नौकरी करने वाले लड़के को पसन्द करती है, ऐसा क्यों?
यह बड़ी समस्या है। आज की शिक्षा व्यवस्था ही ऐसी हो गई है, वह सिर्फ नौकर तैयार करती है। पुराने समय में शिक्षा का उद्देश्य था अपनी क्षमता और प्रतिभा को निखारना और जीवन के निर्वाह में समर्थ बनना। आज शिक्षा का उद्देश्य डिग्री पाना और नौकरी ढूंढना हो गया है। किसी कवि ने बहुत पहले लिखा-
“इस जमाने में न जाने क्या कारनामा कर गए,
बी.ए. किया, एम.ए. किया, नौकर हुए, पेंशन मिली और मर गए।”
यह दुनिया बिल्कुल उल्टी रीत में जा रही है और ultimately (अंततः) सब frustrate (निराश ) हो कर आते हैं, निचुड़ जाते हैं। हमें इन सब चीजों को नहीं देखना चाहिए। वस्तुतः नौकरी, पेशा, व्यवसाय या जो कुछ भी है वह जीविका के लिए की जाती है। व्यक्ति को यह देखना चाहिए कि “मेरी जीविका कहाँ अच्छी चलेगी?” अच्छी जीविका का आधार क्या है?- जहाँ अल्पतम व्यस्तता, न्यूनतम हिंसा और अधिकतम आमदनी हो वो अच्छी जीविका है। कम से कम involvement (भागीदारी) हो, कम से कम हिंसा हो और अधिक से अधिक कमाई हो, यह एक अच्छी जीविका की बात है। अगर हमारे घर-परिवार में ही सारा काम है, तो हमें इधर-उधर जा कर किसी की नौकरी बजाने की क्या जरूरत है? सोच बदलनी चाहिए, इस कारण कई लोगों को तो जबरदस्ती नौकरी करनी पड़ती है क्योंकि लड़की नहीं मिलती। यह सब चक्कर गलत है, सोच बदलनी होगी, जब तक समाज अपनी सोच को नहीं बदलती तब तक सुपरिणाम नहीं आएँगे।
इनके कारण आज गाँव-शहर खाली हो रहे हैं। सब metro cities (महानगरों) की तरफ जा रहे हैं और वहाँ जाकर अपने survival (जीवन यापन) करने के लिए भी struggle (संघर्ष ) कर रहे हैं। यह एक बहुत बड़ी समस्या है, इससे हमारे समाज का आन्तरिक समीकरण पूरी तरह से चरमरा रहा है। हमें इस पर बहुत गम्भीर होने की आवश्यकता है।
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